Thursday 13 November, 2008

'फ़िक्सिंग' के ज़रिए 'फेस सेविंग'!

आस्ट्रेलिया के क्रिकेट फैन्स और वहां की मीडिया तिलमिला रही है। ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने उनके बदन पर एक साथ हज़ारों चीटियां छोड़ दी हों। वे छटपटा रहे हैं और उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करें? कोई कहता है कि पॉटिंग को अब बाहर का रास्ता दिखाकर सायमंडस को वापस लाना चाहिए, कोई कहता है कि मैग्रा और गिलक्रिस्ट जैसी दूसरी प्रतिभाएं ढूंढ़नी चाहिए, तो कोई नागपुर टेस्ट को ही फिक्स बता कर अपनी खिसियाहट मिटाने में लगा है।
दरअसल, बॉर्डर-गावस्कर सीरीज़ पर टीम इंडिया का कब्जा सिर्फ़ हिंदुस्तान की जीत नहीं, बल्कि क्रिकेट आस्ट्रेलिया की हार भी है। और 10 नवंबर को ख़त्म हुए नागपुर टेस्ट को फिक्स करार देने में जुटी एक लॉबी ऐसा कर आस्ट्रेलिया की फेस सेविंग में जुटी है। उन्हें इसके लिए बूढ़े पॉटिंग समेत अपने ही चंद खिलाड़ियों की बलि देना तो गवारा है, लेकिन एक मुल्क के तौर पर आस्ट्रेलिया को हारते हुए देखना कुबूल नहीं।
वैसे नागपुर टेस्ट पर चाहे जितनी भी उंगलियां उठाई जाएं ये सच है कि इस हार ने आस्ट्रेलिया का गुरूर तोड़ दिया है। मैदान पर किसी भी तरीक़े से जीत हासिल करने पर यकीन रखनेवाले आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को भी ये समझ में आ गया है कि अब उनका किला पहले की तरह अजेय और अभेद्य नहीं रहा। यही वजह है कि लगातार दो टेस्ट मैचों में शिकस्त खाने के बाद अब एक सोची-समझी रणनीति के तहत नागपुर टेस्ट को फिक्स करार देने की कोशिश की जा रही है।
क्रिकेट की ख़बर रखनेवाले लोग ये अच्छी तरह जानते है कि इंटरनेशनल क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की एंटी करप्शन विंग आमतौर पर किसी भी इंटरनेशनल मैच की रिकॉर्डिंग का बारीकी से मुआयना करती है, ताकि जानबूझ कर हारने जैसी कोई बात नज़र आने पर कार्रवाई की जा सके। लेकिन अब एक लॉबी इस रुटीन अफ़ेयर को मुद्दा बना कर नागपुर मैच में टीम इंडिया की काबिलियत पर पानी फेरना चाहती है। तर्क दिये जा रहे हैं कि पहली पारी में हेडन और दूसरी पार्टी में पॉटिंग जिस तरह रन आउट हुए, आस्ट्रेलिया की ओर से मैदान पर जो फिल्डिंग सेट की गई, दूसरी पारी में जिस तरह महज़ दो रन प्रति ओवर की गति से रन बनाए गए और हरभजन जैसा पुछल्ला बल्लेबाज़ भी हाफ़ सेंचुरी लगा गया, वो सब मैच फिक्स होने का ही सुबूत था।
शुक्र है कि ऐसे तर्क गढ़नेवाले इस लॉबी ने दूसरी पारी में गांगुली और लक्ष्मण के सस्ते में आउट होने, सचिन के रन आउट होने, स्लिप पर फिल्डिंग कर रहे द्रविड़ द्वारा दो कैच छोड़ने और फिल्डिंग में कई बार काहिली का मुज़ाहिरा करनेवाले भारतीय खिलाड़ियों को अपनी ज़द में नहीं लिया। वैसे भी ऐसा कर ना तो उन्हें फ़ायदा होता और ना ही हार की खीझ समाप्त होती। ऐसे में फिक्सिंग को लेकर एक तरफ़ा नज़रिया ही 'फेस सेविंग' कर सकती थी। जिसकी कोशिश जारी है।

7 comments:

समय चक्र said...

bahut hi sateek. dhanyawad.

Udan Tashtari said...

अब फेस सेविंग हो या जो हो..ट्राफी तो अपनी हो ली.

योगेन्द्र मौदगिल said...

सटीक व सामयिक चिंतन के लिये बधाई

Anonymous said...

क्राइम से खेल की ख़बरों तक आपका कोई जबाव नहीं है...काश ये हुनर मेरे पास भी आ जाये

जागो इंडिया जागो said...

क्राइम और क्रिकेट का कदमताल अच्छा लगा । सही में अच्छा लिखा है। जज्बातों की तारीफ करनी ही पड़ेगी । वैसे टीम इंडिया की काबिलियत पर पानी फेरने की जरूरत नहीं। जब कैच छोड़ना शुरू कर देते हैं तो पता ही चलता कब मैच हार जाएंगे ।

बवाल said...

मैं भी उड़नतश्तरी से सहमत हूँ बनर्जी साहब के ट्रॉफी तो अपनी हो ली. हा हा. है ना ?

डॉ .अनुराग said...

गौतम गंभीर का मामला ऑस्ट्रलिया के खिलाड़ी ओर उनके आचरण ओर ici के व्यवहार दोनों को साबित करता है ,इससे पहले वेस्टइंडीज के अंपायर के बारे में भी सौरव ने अपनी शियत दर्ज करायी थी ओर ये भी सच है की भारतीयों के ख़िलाफ़ उनके कई निर्णय रहे है ....ऑस्ट्रिलिया के खिलाडियों का बार बार हरभजन वाले विवाद को उठाना सब उनकी गन्दी सोच का परिणाम है....जो भी खिलाडी उनके खिलाफ अच्छा परद्शन करता है वाही उनकी आँख की किरकिरी बन जाता है .....खैर अब तो भारत ने इंग्लैंड को भी धूल चटा दी है पहले one डे में