हर बार की तरह इस बार भी बम धमाके हुए... दर्जनों लोग मारे गए और नेताओं ने मौका-ए-वारदात का मुआयना करने की रस्म पूरी कर ली। लेकिन इस बार हुए धमाके मुझे दूसरे धमाकों के मुकाबले थोड़े अलग लगे। मुझे लगा जैसे इस बार के धमाकों ने हमें पहले के मुकाबले थोड़ा ज़्यादा सजग और जागरूक बना दिया है... शायद इसलिए, क्योंकि ये धमाके देश के दिल दिल्ली (मीडिया हब) में हुए और मीडिया ने उसे भी किसी दूसरे बिकाऊ मुद्दे की तरह शानदार तरीक़े से लपक लिया।
बेंगलूर, अहमदाबाद और जयपुर जैसे शहरों में जिन बम धमाकों की ख़बरें जहां महज़ एक ही दिन में टेलीविजन के पर्दे से ग़ायब हो गई थीं, वहीं दिल्ली में धमाकों के बाद ख़बरों का जो सिलसिला शुरू हुआ, वो अब भी चल रहा है। (दूसरे शहरों में हुए बम धमाकों पर भी अगर ऐसी रिपोर्टिंग होती, तो शायद अच्छा रहता) ये और बात है कि इनमें से कई धमाकों में दिल्ली में हुए धमाकों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा नुकसान हुआ था। और शायद यही वजह है कि इस बार हमारी निगाहें 'माननीय' गृहमंत्री 'जी' के कपड़ों पर भी चली गईं, जो उन्होंने सीरियल ब्लास्ट के डेढ़-दो घंटे के दौरान तीन बार बदले थे... यकीन मानिए, मंत्री 'जी' की इस हरकत मीडिया के सिवाय किसी को भी ज़्यादा हैरानी नहीं हुई होगी... क्योंकि सालों-साल ठगे जाने के बाद अब हिंदुस्तान का हर नागरिक इतना 'मैच्योर' हो चुका है कि वो नेताओं की इन हरकतों का बुरा नहीं मानता। और इसीलिए मैं इस बार 'माननीय' के कपड़ों की चर्चा करने की बजाय उनसे भी दो क़दम आगे बढ़ कर उनके पैरोकार, कांग्रेस के प्रवक्ता और क़ाबिल वकील अभिषेक मनु सिंघवी के बयानों की चर्चा करना चाहूंगा, जो उन्होंने शिवराज पाटील के निशाने पर आने के तुरंत बाद दिए थे।
सिंघवी ने कहा, 'भारतीय जनता पार्टी को धमाकों में भी राजनीति नज़र आ रही है। वे गृहमंत्री का इस्तीफ़ा मांग रहे हैं। लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि क्या अपनी किसी नाकामी पर कभी भाजपा के किसी नेता इस्तीफ़ा दिया है? जो पाटील देंगे?'
वाह! सिंघवी साहब, वाह! क्या नज़ीर पेश की है! पाटील साहब सिर्फ़ इसलिए इस्तीफ़ा नहीं देंगे क्योंकि इससे पहले भाजपा के किसी नेता ने अपनी भूल या नाकामी पर ऐसा नहीं किया। क्या सिंघवी साहब को अपनी ही पार्टी के बड़े नेताओं की कुर्बानियां याद नहीं हैं, जिन्होंने मामूली सी नाकामियों पर भी कुर्सी को लात मारने से गुरेज नहीं किया। लेकिन जनाब भला उन कुर्बानियों को क्यों याद करें? वे तो भाजपा के 'नए चरित्र' से सबक लेना चाहते हैं। वैसे लें भी क्यों ना? जब नया चरित्र ही उन्हें कुर्सी बचाने का फार्मूला देता हो, तो फिर अपने नेताओं को भला कौन याद करे?
Tuesday, 23 September 2008
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3 comments:
मुझे लगा आप ये कहेंगे कि कांग्रेस पहली बार आतंक के विरुद्ध कुछ करते हुए दिखने की कोशिश कर रही है।
आपका हिन्दी ब्लागजगत में स्वागत है!
वाह! क्या नज़ीर पेश की है!
सार्थक और बहुत सुंदर लेख धन्यबाद ....... आपको मेरे ब्लॉग पर पधारने हेतु पुन:: आमंत्रण है
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