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वैसे तो मैं कोई चिंतक नहीं हूं और ना ही बहुत सीरियस किस्म का इंसान ही हूं। फिर भी मुझे लगता है कभी ना कभी हर इंसान कुछ ना कुछ सोचता या चिंतन ज़रूर करता है। ख़ास कर तब, जब वो अकेला होता है। शायद चिंतन ही ऐसा है कि इंसान भीड़ में होते हुए भी चिंतन के लिए ख़ुद को भीड़ से अलग कर लेता है।
4 comments:
ब्लॉग की दुनियां में आप भी आ गये...स्वागत है!...भई पत्रकार हैं तो भला इस दुनियां से कैसे दूर रह सकते हैं...ज्यादा दिन।तो चलिये इंतज़ार है... आप अपने चिंतन को किस तरह शब्दों का रूप देंगे।BEST OF LUCK :-)
अह्हा..
भाई आप भी आ ही गये ब्लागिंग के अथाह समंदर मे गोता लगाने...विचारो के इस अनोखे मंच पर आपका तहेदिल से स्वागत है। उम्मीद है कि कुछ मौलिक और स्तरीय विचारो से रूबरू होने का मौका मिलेगा।
आपके अगले पोस्ट के इंतजार मे...
आपका शुभेच्छु,
-शिवेंद्र
aapka swagat hai...supratim ji ... per apne man me umad rahe vicharon ko... l;ikh dete to ...achhca lagta ....koi baat nahi kal sahi
Jhakash Bhai... Maza aa Gaya. Bilkul Sahi Comment Hai, Sayad Yeh Dekh kisi Bollywood Member ko Hosh aa jaye. Lage Raho Dada lage raho.
Sridhar Raju, Bathinda.
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