Friday, 12 September 2008

ठाकरे, बाज़ार और दीदी की चुप्पी!

एक टीवी चैनल पर कुछ रोज़ पहले मैं लता मंगेशकर का इंटरव्यू देख रहा था। तमाम सवालों के बाद पत्रकार ने थोड़ा घबराते हुए पूछ ही लिया कि जया बच्चन और राज ठाकरे के बीच चल रहे विवाद पर आपकी क्या राय है? घबराते हुए शायद इसलिए... क्योंकि उसे लगा होगा कि दीदी कहीं इस सवाल से नाराज़ ना हो जाएं... भई, लता मंगेशकर हैं... कोई छोटी-मोटी हस्ती नहीं। पता नहीं कब मिज़ाज बदल जाए... ख़ैर, जानते हैं लता जी ने क्या जवाब दिया? "देखिए... ये सब पॉलिटिक्स है। मैं शुरू से ही इससे दूर रहीं हूं। इसलिए -- नो कमेंट्स!" आप शायद पूछेंगे कि इस जवाब में अजीब क्या है? लेकिन मुझे लगता है कि यही वो जवाब है, जिसने राज ठाकरे जैसे लोगों को इतना फूलने-फलने का मौका दिया। लता जी ने अपने जवाब से खुद को तो अलग कर लिया... लेकिन क्या ये ठीक नहीं होता कि वे राज ठाकरे की सोच और दबंगई की मज़म्मत करतीं? सही रास्ता दिखातीं और ये पाठ पढ़ातीं कि हिंदी के खिलाफ़ बोलना देशद्रोह से कम नहीं। क्या उन्हें नहीं चाहिए था कि वे जया बच्चन का सिर्फ़ इसलिए साथ देती कि जया ने हिंदी की वकालत की थी? वैसे राज की तरह कुछ लोग शायद जया बच्चन के ताज़े बयान में भी मराठी विद्वेष ढूंढ लेंगे, लेकिन मुझे लगता है कि जया बच्चन का बयान सौ फ़ीसदी मर्यादित था और उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं कही थी, जिससे मराठियों की मर्यादा को चोट पहुंची हो। फर्ज़ कीजिए कि अगर लता मंगेशकर की तरह इस मुल्क की तमाम बड़ी हस्तियां राज ठाकरे को उनके नज़रिए पर लानत भेजती, तो क्या इससे राज ठाकरे का हौसला थोड़ा कम नहीं होता? कुछ लोग शायद ये कहें कि ऐसा करने से राज ठाकरे जैसे लोगों की अहमियत बढ़ जाएगी, लेकिन क्या ऐसा नहीं लगता कि ऐसा नहीं करने से राज ठाकरे जैसे लोगों की मनमानी को प्रश्रय मिल जाएगा। राज इतने भी छोटे नहीं कि उनकी तमाम हरकतों की अनदेखी कर जाए... एक बात और, पूरी दुनिया ने इस विवाद को बेशक जया बच्चन बनाम राज ठाकरे का नाम दे दिया। लेकिन क्या बॉलीवुड के उन सितारों को इस मामले पर एकजुट हो कर राज ठाकरे को जवाब नहीं देना चाहिए था, जो रोटी तो हिंदी की खाते हैं... लेकिन जीते 'इंग्लिश वर्ल्ड' में हैं। वैसे बॉलीवुड से शायद कुछ उम्मीद करना भी बेकार है। जब पूरा बच्चन परिवार ही बिना किसी गलती से राज ठाकरे से माफ़ी मांगता रहा हो, तो दूसरों से क्या उम्मीद कर सकते हैं? दरअसल ये बाज़ार ही है, जो सबको चला रहा है। बाज़ार में अपनी दुकान चलाने के लिए राज ज़हर उगल रहे हैं और बाज़ार में अपनी फ़िल्म चलाने के लिए बच्चन परिवार माफ़ी मांग रहा है... शायद बाज़ार के लिए ही लता दीदी जैसी हस्तियां भी चुप रह जाती हैं।

13 comments:

Rajiv K Mishra said...

सुप्रतिम भाई, आगाज़ तो शानदार है, उम्मीद है अंज़ाम भी अच्छा होगा। आगाज़ और अंज़ाम के बीच एक लंबी सफर तय करनी होती है, और कई ब्लॉगर्स वहीं मार खा जाते हैं। लगातार कंटेंट जेनरेट करते रहना अपने आप में एक चैलेंज है। आप की लेखनी से कुछ उम्मीदें भी हैं। जहाँ तक लता जी की बात है, एक गायिका के रूप में तो मैं भी उनका सम्मान करता हूं, लेकिन एक व्यक्ति के रूप में वो मुझे प्रभावित नहीं कर पाई है। कुछ साल पहले का एक वाक्या है, कि उनके घर के सामने एक फ्लाई-ओवर बनना था। प्राईवेसी की दुहाई देकर उन्होंने उसे नहीं बनने दिया...जिससे मुंबई की आम जनता को ट्रेफिक जाम से काफ़ी राहत मिल सकती थी।

राज जहर हैं। चाचा और भतीजे में रंजिश है। लेकिन चाचा की नकल करके भतीजा उनसे भी दो कदम आगे निकल जाना चाहता है। भतीजवा चाहता है कि चाचा की जमीन हड़प लें, चचा बूढ़ा हो गया है और उसका बेटवा नालाईक है।

विवेक सिंह said...

विचारणीय मुद्दा है .

Unknown said...

अच्छा आलेख है। ब्लॉग से वर्ड वैरिफिकेशन हटा लें। इससे कमेंट देने वाले हतोत्साहित होते हैं।

राजीव किशोर

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

शोभा said...

बहुत अच्छा लिखा है। स्वागत है आपका।

Kavita Vachaknavee said...

नए चिट्ठे का स्वागत है. निरंतरता बनाए रखें.खूब लिखें,अच्छा लिखें.

Pradeep Kumar said...

सही बात तो यह है कि यह घटिया और तुष्टिकरण की राजनीति नहीं चाहती कि सब कुछ ठीक ठाक चले ा ये बडे लोग तो एसे ही हैं कि नाम बडे और दश्रन छोटे सही बात कहने की हिम्‍मत किसी में नहीं;;;;;; बढिया शुरूआत है सिलसिला बना रहे

राजेंद्र माहेश्वरी said...

वाकई दीदी की चुप्पी ने उनकी राष्ट्र निष्ठा व हिन्दी प्रेम पर प्रश्न चिन्ह ? लगाया है।

ऐसा न हो कि पीडा देखे पर रोये नहीं, पतन देखे और सो जाये।

Amit K Sagar said...

अच्छा.

रंजन राजन said...

हिंदी के समस्त पुजारियों, शुभचिंतकों को हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।
सुप्रतिम भाई, आगाज़ तो शानदार है, उम्मीद है अंज़ाम भी अच्छा होगा।
.....वैसे बॉलीवुड से शायद कुछ उम्मीद करना भी बेकार है। जब पूरा बच्चन परिवार ही बिना किसी गलती से राज ठाकरे से माफ़ी मांगता रहा हो, तो दूसरों से क्या उम्मीद कर सकते हैं?..... अच्छा लिखा है आपने।
शब्द पुष्टिकरण हटा दें तो टिप्पणी डालने वालों को सुविधा होगी।
हिंदी दिवस पर मैंने एक पोस्ट
http://medianarad.blogspot.com/
पर डाली है। आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।

Girish Kumar Billore said...

कोई बोले न बोले ख़ुद राज़ को उनका भविष्य बताएगा
जिस पत्तल में खाओ उसी में छेद करना कितना ग़लत होता है सहमत हूँ कि " राज की तरह कुछ लोग शायद जया बच्चन के ताज़े बयान में भी मराठी विद्वेष ढूंढ लेंगे, लेकिन मुझे लगता है कि जया बच्चन का बयान सौ फ़ीसदी मर्यादित था और उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं कही थी, जिससे मराठियों की मर्यादा को चोट पहुंची हो।"-लेकिन यदि हिन्दी-भाषी या अन्य किन्हीं प्रदेशों के कुछ राज़ टाईप लोग पैदा हो गए तो.....?

شہروز said...

श्रेष्ठ कार्य किये हैं.
आप ने ब्लॉग ke maarfat जो बीडा उठाया है,निश्चित ही सराहनीय है.
कभी समय मिले तो हमारे भी दिन-रात आकर देख लें:

http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/

प्रदीप मानोरिया said...

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है बधाई कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारें