मेरे ब्लॉग पोस्ट पर इतनी सारी टिप्पणियों के लिए आज मैं सभी का शुक्रिया अदा करता हूं। सच पूछिए, तो ब्लॉग की दुनिया का नया खिलाड़ी हूं और जोश भी अभी बना हुआ है... आज यानि शनिवार 13 सितंबर को भी कुछ लिखना चाहता था... लेकिन दिल्ली में अचानक हुए सीरियल बम धमाकों ने रास्ता रोक लिया। लिहाज़ा... अभी जो सोच रहा हूं, वही लिख डालता हूं।
रिपोर्टिंग के लिए करोलबाग पहुंचा था... वहां का मंज़र दहलानेवाला था, लेकिन उससे भी ज्यादा दहलानेवाली बात थी लोगों की संवेदनहीनता... ख़बरों की आपाधापी में हम मीडियावाले तो पहले ही काफी हद तक संवेदनहीन हो चुके हैं... कुछ मजबूरी भी है... लेकिन, इस मौका ए वारदात पर मुझे आम लोग भी जितने संवेदनहीन नज़र आए, उसने मुझे अंदर से हिला दिया। मौके पर एक सज्जन पानी का जग लेकर घूम रहे थे। गोया, जल सेवा कर रहे हों, लेकिन यकीन मानिए उनका मकसद जलसेवा करना कम और टीवी के कैमरों के सामने आना ज्यादा था। इसके लिए उन्होंने कई बार धक्का मुक्की भी की। खैर, उनका इरादा जो भी हो... कुछ परेशानहाल लोगों की मदद ज़रूर हो गई।
कई लोग मौके पर नेतागिरी चमकाने में भी जुटे थे... लेकिन हद तो तब हो गई, जब एक विधायक जी का प्यादा मेरे पास एक ऑफ़र लेकर पहुंचा। प्यादा एक सांस में कह गया, "हमारे विधायक जी का इंटरव्यू ले लीजिए... अभी (फलां) चैनल में लाइव बोल रहे हैं, फिर मैं आपके पास ले आऊंगा। बड़े जुझारू नेता हैं। कभी आपका भी कोई काम हो तो ज़रूर कहिएगा।" मैंने उसे मना तो कर दिया, लेकिन जिस जगह पर कत्ले-आम मचा हो, लोग राहत के लिए तड़प रहे हों, लॉ एंड ऑर्डर कायम करने में पुलिस की सांस फूल रही हो, वहां ऐसे नेताओं और उनके प्यादों का ये चेहरा मुझे अंदर से हिला गया। अंत में बस इतना ही कहना चाहूंगा, ऐसे नेताओं से सावधान रहिएगा। कहीं ना कहीं पूरे तंत्र की इस नाकामी में इन नेताओं का भी बड़ा हाथ है।
Saturday, 13 September 2008
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8 comments:
बहुत ही शर्मनाक है, लोगो की सवेदंशिलता ख़तम हो गई है
सुप्रतिम भाई, आपको लगभग 3 वर्षों से जानता हूं। हम दोनों ने हफ्ते भर के अंदर ही टीवी टुडे ज्वाईन किया था। नवंबर 2005....। पहले दिन ही आपके संजीदा व्यक्तित्व ने एक सुखद एहसास करवा दिया था। आज के रिपोर्टर मर चुके हैं। मानवीय मुल्यों पर बाईट भारी पर रहा है। लेकिन आपकी यही मानवीय दृष्टिकोण आपको भीड़ से जुदा कर देती है। जारी रहें...अच्छा लगता है जब एक थका देने वाली दिन के बाद भी आप कुछ ऐसा लिखने की हिम्मत दिखलाते हैं।
अफसोसजन..दुखद...निन्दनीय घटना!!
अरे भाई सुप्रतिम जी, आप ने अपनी यह बात शेयर कर के हम सभी का ज्ञान बढाया है, अब हमें भी इस विषय पर सोचना चाहिए.
लिखते रहिये. आप भी अपनी नेट सक्रियता बनाए रहें.
नए ब्लॉग नई कोंपलों के समान हैं
आपकी एक टिपण्णी और एक विज्ञापन क्लिक संवार सकती है कई जिंदगियां और हमारी भाषा हिन्दी को.
निवेदक : 'ब्लॉग्स पण्डित'
आओ भई सुप्रतिम आखिर, टीवी की संवेदनहीनता से त्रस्त होकर ब्लॉग की संतुष्टि का जरिया तलाशने चले आए। बढ़िया है और बताइए क्या हाल-चाल है।
pyare bhai,
aapko sachai aur samvedansheelta ke saath blog par dekh kar man ko tassali heii. bahut achcha ,likhte rahie.
desraj kali
कभी-कभी लगता है कि हम किसी संक्रामक रोग को साथ लेकर घूमते हैं। ख़ुद संवेदनाशून्य होते जा रहे हैं और जहां जाते हैं वहां भी लोगों को वैसा ही बना देते हैं। बाइट और विजुअल के भूखे- हम भी और वो भी !
तुमने मुझे मेल किया था कि भई हो सके तो ब्लॉग देख लेना तारीख थी १२ लेकिन मैं तुम को बता दूं कि सबसे ज्यादा कोताही यदि मैं करता हूं तो ऑफिस के मेल चैक करने में। सो किया ही नहीं जब देखा तो सोचा की जाता हूं लेकिन कुछ यूं फंसा कि आ नहीं पाया। कल अड्डे पर पहुंचा तो देखा कि आप नदारद हैं पता चला कि आप आउट ऑफ स्टेशन थे तो सोचा की देखा जाए कि क्या लिखा तो पढ़कर अच्छा लगा।
दिल से स्वागत है।
बस साथ बनाए रखना, ये शुरुआती जज़्बा बना रहे हर दिन ये फिक्र रहे कि यहां भी रिपोर्टिंग करनी हैं। तब तो बढ़िया वरना हजारों यहां भीड़ में खो जाते हैं सुप्रा तुम्हारे सामने तो उदाहरण भी हैं पता नहीं कितने समय पहले उसने ब्लॉग खोला था लेकिन लिखने के नाम पर दूसरी पोस्ट नहीं आई। जान तो रहे होगे किसके बारे में बोल रहा हूं। बोलो तो बोलता है कि यार चार-पांच ड्राफ्ट में पड़े हैं।
बहरहाल तुम लिखते रहना सुप्रा।
फिर से बधाई और स्वागत।
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