संभावना, बिग बॉस चाहते हैं कि आप कनफ़ेशन रूम में आएं... क्या आप घर के मौजूदा माहौल के बारे में बिग बॉस को कुछ बताना चाहते हैं?
हिंदुस्तानी टेलीविज़न के पर्दे पर गूंजती ये आवाज़ अब रोज़ की बात बन गई है। रात के दस बजते-बजते तकरीबन हर घर में कोई ना कोई बिग बॉस का 'सबऑर्डिनेट' उनके घर में चल रही धींगामुश्ती के मज़े लेने के लिए टेलीविज़न के सामने बैठ जाता है। और यकीन मानिए कि मेरा घर भी इससे अलग नहीं है। शायद मैं ख़ुद ही वो 'सबऑर्डिनेट' हूं जो बिग बॉस के घर में चल रही उथल-पुथल को रोज़ देखना और महसूसना चाहता हूं। लेकिन इसी चाहत के बीच कभी-कभी ये भी सोचता हूं कि आखिर बिग बॉस के बहाने हम क्या देख रहे हैं? छल-प्रपंच, निंदा, साज़िश और बैक स्टैबिंग के रोज़ाना बनते-गढ़ते नए प्रतिमान? सच पूछिए, तो जवाब हां में हैं और मेरा 'कन्फ़ेशन' ये है कि मैं भी इसमें शरीक हो गया हूं।
दरअसल, बिग बॉस के बहाने हम वो सबकुछ देख रहे हैं, जो तकरीबन हर दस में से नौ इंसान की असलियत है। वो असलियत जिसे शायद हम चाह कर भी कुबूल नहीं कर पाते। वो असलियत जो रोज़ाना नई 'निंदा रस' से सिंच कर ही पुष्ट होता है। और शायद इसी असलियत में बिग बॉस की काबिलियत यानि टीआरपी भी छिपी है।
अभी परसों की बात है, पंजाब से मेरे एक दोस्त ने रात के कोई साढ़े दस बजे मुझे फ़ोन किया। मेरे हैलो कहते ही वो बिग बॉस की शिकायत लेकर बैठ गया। उसका कहना था कि अब बिग बॉस के घर में अश्लीलता की सारी हदें पार हो गई हैं। राहुल महाजन कभी खुलेआम पायल रोहतगी को किस कर रहे हैं, तो कभी स्वीमिंग पूल में उन्हें आलिंगबद्ध किए तैर रहे हैं। मुझे उनकी बात समझने में देर नहीं हुई। क्योंकि चंद मिनटों पहले ही मैंने ख़ुद भी वो नज़ारा देखा था। गनीमत ये है कि अभी मेरे घर में कोई बच्चा नहीं है और इसलिए मुझे वो सीन देखने में कोई ज्यादा झिझक भी नहीं हुई। लेकिन जिस दोस्त ने मुझे फ़ोन किया था, उनके बेटे की उम्र कोई 10-12 साल की है... और 'निंदा रस' का मज़ा लेने के चक्कर में यकीनन उनके साथ-साथ उनके बेटे ने भी वो नज़ारा देख लिया होगा, जिसे बेटे के साथ देखते हुए मेरे दोस्त के पसीने छूट गए होंगे। नतीजा -- मुझे किया गया टेलीफ़ोन कॉल। मेरे दोस्त ने मुझसे (एक पत्रकार से) बिग बॉस के खिलाफ़ कोई ख़बर लिखने या दिखाने की गुज़ारिश की... लेकिन उनके तेवर से मैं ये बात ख़ूब समझ गया कि मेरे दोस्त की हालत भी उन जैसे पाठकों या दर्शकों की तरह है, जो अश्लीलता के खिलाफ़ झंडाबरदारी तो करते हैं, लेकिन मौका मिलते ही उसका मज़ा लेने से भी नहीं चूकते। बहरहाल, रात के साढ़े दस बजे मैं अपने इस दोस्त से ज़्यादा बात करने के मूड में नहीं था... दरअसल, लंबी बात करने से बिग बॉस के 'निंदा रस' के यूं ही बह जाने का डर सता रहा था। लिहाज़ा मैंने उनके हां में हां मिलाई और फिर से बिग बॉस के घर में दाखिल हो गया।
Friday, 26 September 2008
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6 comments:
kisne kha ki big boss dekho
आगे आगे देखिये, होता है क्या!
Big Boss ko lekar tippani satik hai. lekin sirf big boss ka drama hi galat nahi balki aise kai natak aur films hain, jo bura prabhao dal rahi hain. akhir protsahan dene wale viwers hi to hain.
बिग बॉस के पात्र दरअसल हर आदमी में छुपे बुरे आदमी की नुमायन्दगी कर रहे हैं -हमारी दमित या अतृप्त इच्छाएं वहाँ खुला खेल रही हैं -और प्रोड्यूसर की चांदी हो रही है !मगर यह नैतिकता के मानदंडों पर कितना ग्राह्य होगा यह देखना है !
मैं टी वी नहीं देखती. मतलब साफ है गंदगी को देखकर आँख बंद कर लेनी वाली बात मुझ पर लागु होती है. जब सफाई की सारी गुंजाइश समाप्त हो जाती है तो लोग भी गंदगी के ऊपर चलने में राहत महसूस करते हैं. और सोचते हैं कि चलो गंदगी तो बाहर फैली हुई है, हमारा घर तो साफ है ना. और जूते पहन कर वह उन सारे जगहों में घूम आते हैं जहां नंगे पांव जाना संभव नहीं होता है.
पर जब वहीं गंदगी खुदा ना खास्ते जूते के बहाने घर तक घुस आती हैं तो जान पड़ता है कि अब सफाई करनी कितनी जरुरी है. पर कोई बात नहीं. सुबह का भूला अगर शाम वापस आ जाए तो उसे भूला ..... ...
सुप्रतिम जी आपने जो आवाज उठाई है वह बिल्कुल सही है. अच्छा लगा पढ़ कर, और यह जान कर कि लोग सच बोलने की हिम्मत रखते हैं.
मौका मिलते ही बिग बॉस का मजा तो मैं भी ले लेता हूँ.
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