दहशतगर्दी क्या होती है, बच्चे का मालूम न था...
उसने तो बस कहा पुलिस से, अंकल जैसे लोग थे वो...
मगर मासूम संतोष पुलिस को अंकलों का हुलिया बताने के लिए ज़िंदा नहीं रहा। महरौली में हुए बम धमाकों ने एक बार फिर इंसानियत का सीना छलनी कर दिया। मौत किसी की भी हो, कैसी भी हो... दुखद ही होती है। लेकिन महरौली के इस्लाम नगर में रहनेवाले नौ साल के संतोष को दहशतगर्दों ने जैसी मौत दी, उससे दुखद मौत कोई और हो ही नहीं सकती। संतोष की उम्र ज़्यादा नहीं थी। लेकिन था तो वो इंसान का बच्चा। इसीलिए पैदा होते ही उसने जाने कहां से इंसानियत सीख ली। लेकिन एक रोज़ (27 सितंबर की दोपहर) इसी इंसानियत ने उसकी जान ले ली। अपने भाई के साथ बाज़ार में अंडे ख़रीदने पहुंचे संतोष ने देखा कि मोटरसाइकिल से गुज़रते दो 'अंकलों' का एक पैकेट अचानक रास्ते में गिर गया। जिस शहर के लोग अपने पड़ोसी को भी ठीक से नहीं जानते, उसी शहर का रहनेवाला संतोष यह देखकर ख़ुद को 'अंकलों' से अलग नहीं रख सका। ये मौत थी या फिर उस मासूम का सामाजिक सरोकार... संतोष ने दौड़ कर पालीथिन का पैकेट उठाया और अंकल-अंकल पुकारता हुआ मोटरसाइकिल के पीछे भागने लगा... मोटरसाइकिल पर गुज़र रहे 'अंकल' दरअसल दहशत के कारोबारी थे। 'अंकलों' की असलियत से नावाकिफ़ संतोष अनजाने में ही इंसानियत निभा रहा था... लेकिन इस पैकेट में हुए धमाके ने पलक झपकते ही उसे बेजान कर दिया। बम के कील और छर्रों से संतोष का जिस्म बुरी तरह बिंध चुका था... और साथ ही बिंध चुकी थी इंसानियत। धमाके के बाद आस-पास के लोग संतोष की मां को अस्पताल ले जा रहे थे। तब तक उसे संतोष के चले जाने का पता चल चुका था... वो पछाड़े खाकर रोती और बार-बार लड़खड़ाते हुए रास्ते में ही बेहोश हो जाती... अपने लाल के छिन जाने की ख़बर ने उसका सबकुछ छीन लिया था... उसका पति रिक्शा चलाता है और इसी एक कमाई से पूरा घर चलता है... वे ग़रीब तो थे, लेकिन उन्हें अपनी ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं थी... मगर, मासूम संतोष के इंसानियत निभाने की एक 'ग़लती' ने उनका सबकुछ ख़त्म कर दिया... संतोष की मां को देख कर लगा कि शायद ग़रीबों में संवेदनाओं की जड़ें भी ज़्यादा गहरी होती हैं... वो किसी अपने के चले जाने पर मातम करते वक़्त अपने आस-पास के माहौल या सोसायटी की ज़्यादा फ़िक्र नहीं करते... हिसाब लगाकर नहीं रोते... संतोष की मां को भी तब दुनिया में और किसी चीज़ की फ़िक्र नहीं थी...
Monday, 29 September 2008
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4 comments:
masumiyat bhari post
bahut achchi jaankaari dhi hai
us masum ko kya pata tha uski masumiyat hi uski jaan legi.jaane kaise log hain wo jinka hriday nahi pasijta.
आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।
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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥
शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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एक संवेदनशील पोस्ट,जो सोचने पर मजबूर करती है।
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