Saturday 4 October, 2008

एक क्राइम रिपोर्टर की कविता

किसी क्राइम रिपोर्टर की बात चलते ही आपके ज़ेहन में कैसी तस्वीर उभरती है? शायद किसी ऐसे इंसान की, जो रोज़-ब-रोज़ होनेवाली जुर्म की वारदातों को देख-देख कर ख़ुद भी पत्थर हो चुका हो। जिसकी पूरी ज़िंदगी और पूरी शख़्सियत ऐसी ही वारदातों के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गई हो। और ज़ाहिर है कि ऐसे किसी इंसान से आप कम-से-कम कविता लिखने की उम्मीद तो नहीं कर सकते। वो भी दिल को छू लेनेवाली कविता। लेकिन मेरा दावा है कि मैं यहां आपकी ख़िदमत में जो कविता पेश कर रहा हूं, उसे पढ़ कर आप यकीनन अपनी सोच पर दोबारा सोचने को मजबूर हो जाएंगे। एक ऐसी कविता, जिसे किसी और ने नहीं, बल्कि हिंदुस्तान के सबसे नामचीन क्राइम रिपोर्टरों में से एक शम्स ताहिर ख़ान ने लिखी है।


तुमको मेरी परवाह नहीं है
क्या मेरा अल्लाह नहीं है
ज्यादा महंगे ख्वाब ना देना
इतनी मेरी तनख्वाह नहीं है
थोड़ी खुशियां पाल के रखना
ग़म की कोई थाह नहीं है
दर्द में अब भी दर्द है कायम
आह में पर वो आह नहीं है
अब शम्स मुश्किल है आगे
रस्ता तो है पर राह नहीं है

7 comments:

Udan Tashtari said...

खान साहब को बधाई-बहुत बढ़िया.

जागो इंडिया जागो said...

ज़माना चाहे भूल जाए समझना
परवाज़ों के दर्द बेआवाज नहीं है

Anil Pusadkar said...

pahado ka sina chir kar bahti nadi si hai ye crime reporter ki kavita.adbhut rachana,badhaai

मृत्युंजय कुमार said...

जन्नत सारी मेरे हिस्से
आए ऐसी चाह नही है
...अच्छी कविता. बधाई

वीनस केसरी said...

एक अच्छी गजल पढ़वाने के लिए धन्यवाद


वीनस केसरी

Anonymous said...

ये जनाब तो पत्‍थरों को भी पिघलाने का माद्दा रखते हैं-
थोड़ी खुशियां पाल के रखना
ग़म की कोई थाह नहीं है
दर्द में अब भी दर्द है कायम
आह में पर वो आह नहीं है
गजब शम्‍स साहब। आप तो दुनिया को धोखे में रखें हुए हैं।

Unknown said...

आपको इस तरह से सुनने को मिलेगा, मालूम ना था..पर पढ़कर जो वाह सस्वर हुई उसके लिए सुप्रतिम भाई को भी धन्यवाद