ब्लॉग की दुनिया में पूरे 105 दिन बाद लौटा हूं। इतने दिनों तक ना तो मैं कहीं व्यस्त था, ना बीमार था और ना ही कोई दूसरी परेशानी थी। अलबत्ता मूड नहीं था, इसलिए नहीं लिख रहा था। अब फिर से मूड बना है, तो लिख रहा हूं। ब्लॉग लिखने का ये भी एक ज़बरदस्त मज़ा है। जब चाहे ज्ञान दो और जब ज्ञान दे देकर जी भर जाए, तो चुप्पी साध लो। भई, मैंने तो ऐसा ही किया।
वैसे भी इतने दिनों तक ब्लॉगिंग की दुनिया से ग़ायब रहने के बाद मुझे इतना तो पता चल ही गया कि मैं कितने पानी में हूं। पता है, एग्रिगेटर्स पर बढ़ते पसंद और ब्लॉग पर टिप्पणियों की तादाद देखकर अक्सर खुशफ़हमी हुआ करती थी कि शायद बहुत बड़ा ब्लॉगर बन गया हूं। कुछ ऐसा, मानों मैं ब्लॉग लिखना बंद कर दूं तो मेरी पोस्ट ना पा कर मेरे पाठक दुबले हो जाएंगे। लेकिन ना तो कुछ ऐसा होना था और ना ही हुआ। हां, इतने दिनों में मुझे सिर्फ़ एक पाठक ने एक बार टेलीफ़ोन कर फिर से ब्लॉग लिखने की गुज़ारिश की... कहा, "अरे, आपने लिखना क्यों बंद कर दिया? आप तो बढ़िया लिखते हैं..." कुछ देर तक मैं भी सोचता रहा, सचमुच! क्या वाकई उसने ईमानदारी से ये बात कही या फिर यूं ही मेरी तरह मूड बना और फ़ोन उठा कर मुझसे बात कर ली! वैसे इस दौरान कई ऐसे दोस्तों ने मुझसे ब्लॉग के बारे में ज़रूर पूछा, जिनसे मैं हमेशा मिलता रहता हूं, जिनसे रेग्यूलर टच में रहता हूं। लेकिन उनके इस हाल-चाल लेने को मैं अपने ब्लॉग के लिए उनकी चाहत बिल्कुल नहीं मान सकता... असली चाहत तो शायद वही होगी, जो फ़ोन से आई थी... पता नहीं, पूरी असली थी भी या फिर सिर्फ़ मूड-मूड की बात थी... बहरहाल, अब फिर से प्रकट हुआ हूं तो अगली बार मूड बिगड़ने तक आपके साथ डटा रहूंगा...
Thursday, 21 May 2009
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8 comments:
आप फिर से ब्लाग पर आये और आप अपने शहर जमशेदपुर से हैं दोनो बातें अच्छी लगी। सृजन जब लक्ष्य हो तो फिर न हाथ रुकते हैं और न ही पाँव थकते हैं। आपके नए प्रकटीकरण पर शुभकामनाएँ।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
जमे रहिये .हम फोन नहीं करते .पर पढने जरूर आ जाते है हजूर ...
चलिए आपका काफी दिनों बाद फिर से स्वागत है .
dubara swagat hai..niyamit hi raha karen.
मुड हो गया है तो दो चार हो जाये..
पुनर्वापसी का स्वागत है .. आपको पढती तो हूं .. लिखते रहें।
एक बार फिर आपका स्वागत है। बहुत दिनों से लॉग इन नहीं कर पा रहा था। ई-मेल से डायरेक्ट पोस्ट भेज कर ब्लॉग पर प्रकाशित कर दिया करता था। आज लगभग एक सप्ताह बाद अपने ब्लॉग पर गया और और लिंक सूची देखने लगा। इतने में आपके ब्लॉग के नीचे कुछ अलग लिखा हुआ दिखा। मुझे तो "मंदी बड़ी भूतिया चीज़ है" पढ़ने की आदत हो गई थी। लेकिन कुछ नया पढ़ा, तुरंत आपके ब्लॉग पर आया हूं। प्रसन्नता की बात है कि आप फिर से लिखना शुरु कर रहे हैं।
लिखना और पढ़ना मूड-मूड की ही बात होती है। और आदमी का मूड उसी चीज़ को पढ़ने को करता है जिसमें कहीं न कहीं उसके विचारों का अक्स दिखाई दे। दिल से कही गई बात, दिल को छूती है। बनावटी लेख छद्म टिप्पणियां बटोर सकते हैं लेकिन वास्तविक पाठकों को नहीं बटोर सकते। आपके लिखे हर लेख में कहीं न कहीं सहजता झलकती है। जो मन में आया, बस लिख दिया। बिना किसी लाग-लपेट के।
शुभकामनाएं, लगातार लिखते रहें।
बहुत ही रोचक प्रविष्टि है। लेख इस विषय की ओर ले जाता है कि कौन किसका पूरक है
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