"सौम्या ज़रूरत से ज़्यादा एडवेंचर्स थीं। वो रात को अकेले निकलीं और इसीलिए उसका क़त्ल हो गया।" कुछ ऐसा ही कहा दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने। उस शीला दीक्षित ने, जो हर महीने-दो महीने में कोई-ना-कोई ऐसी ही अजीबोग़रीब और बेतुकी कमेंट कर विवादों की शुरुआत कर देती हैं। फिर चाहे वो दिल्ली से यूपी-बिहार वालों को बाहर भगाने की बात हो, ब्लू लाइन में सफ़र करने की बजाय पैदल चलना मुनासिब समझने की या फिर कुछ और... लगता है कि शीला जी ने अब अपनी और अपने सरकार की कामयाबियों की वजह से कम, बल्कि आपत्तिजनक बयानबाज़ी की वजह से ही ज़्यादा मशहूर होने की क़सम खा ली है।
मैं जिस मीडिया हाऊस में काम करता हूं, सौम्या भी वहीं काम करती थीं। उससे मेरी व्यक्तिगत तौर पर कोई मुलाक़ात तो नहीं थी, लेकिन जितना भी मैंने उसे जाना वो सिर्फ़ अच्छा ही अच्छा था। सौम्या घर से ऑफ़िस और ऑफ़िस से घर जानेवाली एक ऐसी सुशील लड़की थी, जिसकी चाहत हर मां-बाप को होगी। उस रात भी सौम्या ड्यूटी से वक़्त पर घर जाना चाहती थी। लेकिन मालेगांव और साबरकांठा में हुए धमाकों ने उसका रास्ता रोक लिया। उसे देर तक दफ़्तर में रुकना पड़ा और निकलते-निकलते रात के तीन बज गए। यकीनन, इतनी देर रात लड़कियों का कहीं भी बाहर निकलना बहुत ठीक नहीं होता है। अकेले में वो बदमाशों की सॉफ्ट टार्गेट होती हैं। लेकिन सौम्या की कहानी से इतना तो साफ़ है कि वो किसी एडवेंचर के लिए रात को नहीं घूम रही थी, बल्कि अपनी ड्यूटी से घर लौट रही थीं। लेकिन मुख्यमंत्री जी ने जैसा कहा उससे तो लगा मानों सौम्या देर रात किसी डिस्कोथेक से मौज-मस्ती करने के बाद लापरवाह लड़की की तरह सड़कों पर घूमने निकली थीं।
सच तो ये है कि कोई भी मां-बाप अपनी लड़की को देर रात तक बाहर रहने देना नहीं चाहता है। सौम्या के घरवाले भी उसे लेकर फ़िक्रमंद थे और इसलिए उन्होंने उसे फ़ोन भी किया था। लेकिन जो होना था, वो दिल्ली में बदमाशों के बेख़ौफ़ होने का नतीजा था। लेकिन अब शीला जी ने बात कही है... उसे सभी सकते में हैं। हो सकता है कि अब शीला जी ये तर्क दें कि उन्होंने ऐसा 'मदरली टोन' में कहा था, लेकिन अगर ऐसा भी था तो भी इस टिप्पणी के लिए ये सही वक़्त नहीं था। सोचिए, जिस घर में मातम पसरा हो, वहां मातमपुर्सी के लिए पहुंच कर अगर कोई मरनेवाले की ग़लती पर ही अपनी राय देने लगे, तो क्या होगा? शीला जी का बयान कुछ ऐसा ही था।
चलिए एक बार के लिए ये मान भी लिया जाए कि सौम्या ने देर रात अकेले निकल कर ग़लती की, तो भी क्या महज़ इस ग़लती के लिए उसका जो अंजाम हुआ, उसे जस्टिफ़ाई किया जाना चाहिए? वैसे तो हर राजनेता को अपने शासन में कभी कोई कमी या ग़लती दिखाई नहीं देती है। लेकिन शीला जी के इस बयान ने तो हद ही कर दी। फर्ज़ कीजिए कि सौम्या या उस जैसी किसी लड़की के बदले कोई मजबूत कद-काठी का मर्द ही सड़क पर अकेला जा रहा होता और हथियारबंद बदमाश उसे गोली मार देते, तो क्या वो सिर्फ़ लड़का होने की वजह से ही बच सकता था? इसका जवाब शायद शीला जी ही बेहतर दे सकती हैं।
Thursday, 2 October 2008
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16 comments:
सच कहा ...किसी भी राजनेता को अपने शासन में कभी कोई कमी या ग़लती दिखाई नहीं देती है...जनता की गल्ती को ढूंढ़कर बहाने बनाए जाते हैं.... पता नहीं कब तक चलेगा ऐसा नाटक ?
दुःख होता है उनके बयानों को सुनकर | शीला जी के बयान निराशाप्रद हैं | उन्हें रिटायर हो जाना चाहिए |
sheela dixit ji ke bayaan ne nirasha hi di hai
शीला दीक्षित सठियाई हुई हैं. उसे निकाल बहर फ़ेंकना चाहिए।
इतनी मूर्खतापूर्ण बातें और वह भी स्त्री की संवेदनशीलता को बदनाम करने वाली!धिक्कर है ऐसी महिला व ऐसी नेता को। गोली ऐसे नेता को मार दी जानी चाहिए।
हाँ, शीला जी के नाम को बदनाम करने वालों को गोली से उड़ा डालना चाहिए, सहमत हूँ
नेता लोग ब्यान दे कर के कभी नही सोचते| ना ही सोच कर ब्यान देते हैं। सो इन से क्या उम्मीद की जा सकती है।
भाई शीला जी की दिल्ली में ३ बजे रात निकलना एडवेंचर ही है । उन्होंने ग़लत क्या कहा। एक मंत्री बम धमाकों के बाद ३ बार कपड़े बदलता है। एक मुख्यमंत्री एक जिम्मेदार लड़की के निर्मम कत्ल पर ऐसा बयान देती हैं। सच है -- सत्ता पाइ के न बौराई।
शीला दीक्षित मुख्यमंत्री पद के लायक कभी नही रहीं लेकिन वह पिछले कई वर्षों से दिल्ली की मुख्यमंत्री है। जनता का दर्द समझने में शीलाजी अक्षम है। वे भी देश के गृहमंत्री शिवराज पाटिल की तरह हैं जो सिर्फ अपने तक सीमित रहना चाहती हैं। ऐसे लोगों को कांग्रेस क्यों मंत्री बनाती है। बहरहाल अभी सबसे अहम है सौम्या के कातिल का पता लगाना और उसे सजा दिलवाना।
हर आदमी परिस्थितियों को अपने चश्मे से देखता है। शीला जी शायद एडवेंचर के लिए निकलती होंगी।
हमारे नेता नीरो के समक्ष बौने नहीं रहना चाहते
मेरे कवि -मित्र हैं कहतें हैं कुछ लोग ऐसे है
जो श्रृद्धांजलि सुख भी जीते जी [पद-अवधि में] लेना चाहतें हैं
आये ऐसे लोगों को हम श्रृद्धांजलि अर्पित करें ...?
वैसे मूर्खता पूर्ण बयान कराने वालों पर पोस्ट न लिखते सुप्रतिम बनर्जी साहब
तो बेहतर होता कभी-कभी हमको लगता है की इस देश में डेमोक्रेसी का नाम
बदल ही देना चाहिए
सौम्या के लिए श्रद्धा सुमन काश शीला जी मुख्यमंत्री के साथ माँ का दिल भी रखतीं
शीला दीक्षित को ऐसा बयां देते हुए सौ बार सोचना चाहिए...माना की देर रात लड़कियों का बाहर रहना अच्छा नही, लेकिन क्या शहर कोई जंगल है, जहाँ गलती से कोई हिरन रात में निकल आए तो दरिन्दे उस पर टूट पड़ें? शर्म आनी चाहिए उन्हें एक ओरत होकर इअसा बयान देते हुए...
शीला दीक्षित का बयान असंवेदनशील है और उनकी आलोचना उचित ही है। परंतु मुझे यह लगता है कि राजनीतिज्ञ भी हमारी आलोचना के 'सॉफ़्ट टार्गेट्स' बनते जा रहे हैं। जिस मीडिया हाउस के लिये सौम्या काम करती थीं क्या उसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती थी रात के 3 बजे तक काम करने वाली महिला को सुरक्षित उसके घर तक भिजवाने की? उस मीडिया हाउस के विरुद्ध आपने एक शब्द भी नहीं लिखा है। सही भी है; जल में रह कर मगर से बैर कौन करता है?
वैसे तो हर राजनेता को अपने शासन में कभी कोई कमी या ग़लती दिखाई नहीं देती है। लेकिन शीला जी के इस बयान ने तो हद ही कर दी। दुःख होता है उनके बयानों को सुनकर |
वैसे आजकल आम जनता के साथ-साथ मीडिया हाऊस के लोग भी चोर-उचक्कों, लुटरें के लिए साफ्ट टारगेट हैं । अकेले दिल्ली की सरकार ही नहीं, अन्य राज्यों की सरकार अपनी नाकामयाबी छुपाने के लिए पीड़ित परिवार को ढांढस बँधाने के बजाए लुटरों और हत्यारों का मनोबल बढ़ा रही है । हो भी क्यों न सरकार भी तो चोर उचक्के व लुटेरे ही चला रहे हैं ?
वैसे आजकल आम जनता के साथ-साथ मीडिया हाऊस के लोग भी चोर-उचक्कों, लुटरें के लिए साफ्ट टारगेट हैं । अकेले दिल्ली की सरकार ही नहीं, अन्य राज्यों की सरकार अपनी नाकामयाबी छुपाने के लिए पीड़ित परिवार को ढांढस बँधाने के बजाए लुटरों और हत्यारों का मनोबल बढ़ा रही है । हो भी क्यों न सरकार भी तो चोर उचक्के व लुटेरे ही चला रहे हैं ?
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