Saturday, 17 January 2009

...दबे पांव आई एक ख़ुशी!


ज़िंदगी में कई बार ख़ुशी और ग़म कब और कैसे दबे पांव दस्तक देते हैं, पता भी नहीं चलता। ऐसा मेरे साथ अक्सर होता है। आपके साथ भी होता होगा। आज बात ऐसी ही एक छोटी सी ख़ुशी की, जिसे मिले हुए वैसे तो चौबीस घंटे गुज़र चुके हैं, लेकिन उसके बारे में जितनी बार सोचता हूं मन एक अजीब उमंग और भावुकता से भर उठता है।
मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूं। मेरे पिता सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुके हैं। उनकी ईमानदारी और हालात का तकाज़ा कुछ ऐसा रहा कि सालों की लंबी नौकरी के बावजूद एक ऐसी छत का इंतज़ाम नहीं हो सका, जिसे वे अपना कह सकें। किराएदार के तौर पर मां-पिताजी की ज़िंदगी का एक लंबा वक़्त गुज़र गया। उन्हें इसका मलाल भी है, लेकिन हमारे सामने उन्होंने इसे कभी ज़ाहिर नहीं किया। जब हम दो भाइयों ने होश संभाला तो दूसरे तमाम नौजवानों की तरह हमारे मन में भी कुछ कर गुज़रने की इच्छा थी। हालात ने साथ दिया और मां-पिताजी के आशीर्वाद से आख़िरकार हमने अब एक मकान ख़रीद लिया है। अच्छी लोकैलिटी में एक शानदार फ्लैट। मैं रहता तो दिल्ली में हूं लेकिन घर के सभी लोग अब इस नए मकान में शिफ्ट हो चुके हैं। इस मकान के साथ ही सालों से सभी के दिलों में दबी एक ऐसी ख्वाहिश पूरी हो चुकी है, जिसके बारे में कुछ साल पहले तक सोचना भी हमारे लिए मुश्किल था।
बहरहाल, नई ख़ुशी ये है कि कल दोपहर को मां ने अचानक मुझे फ़ोन किया। बोली, "बेटा तेरे पिताजी और मैं घर के बरामदे में बैठी लंच कर रही हूं। ठंडी हवा चल रही है और गुनगुनी धूप खिली है। अपने घर में यूं इत्मीनान से बैठना कितना सुकून दे रहा है, ये मैं बता नहीं सकती। फ़ोन बस ये कहने के लिए किया था कि बेटा, और तरक्की करो। जीते रहो।" यकीन मानिए, मां के ये चंद अल्फ़ाज़ अब भी मेरे कानों में गूंज रहे हैं। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है।

12 comments:

विष्णु बैरागी said...

आपकी पोस्‍ट पढ कर मुझे रोना आ गया। घर से चला था तो एक कील भी लेकर नहीं। बंजारों की तरह जीने वाले को जब सर पर छत मिल जाती है तो उसकी प्रसन्‍नता का अनुमान कोई भी नहीं लगा सकता। मैं भी नहीं। मैं, जो इस दौर से गुजर कर उसी मुकाम पर पहुंचा हूं जहां से आपने यह पोस्‍ट लिखी है।
आपको और आपके समूचे परिवार को बहुत-बहुत बधाइयां, हार्दिक अभिनन्‍दन और अकूत शुभ-कामनाएं।
ईश्‍‍वर से याचना है कि आपको और आपके समूचे परिवार को नया आवास शुभ, सुखद, शान्तिदायक, स्‍वास्‍थदायक, समृध्दिदायक और यशदायक हो। आप सब लोग परम प्रसन्‍नता से रहें-ऐसे प्रसन्‍न और ऐसे हिलमिल कर कि लोग आपसे ईर्ष्‍या करें।
आज रो कर आनन्‍द आया।

संगीता पुरी said...

अपने घर के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं....भगवान से प्रार्थना है कि आप निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर हों।

सुप्रतिम बनर्जी said...

विष्णु जी,
तहे दिल से शुक्रिया। ये आप जैसे शुभचिंतकों की दुआओं का असर है।

डॉ .अनुराग said...

अच्छा लगता है .आपके जज्बात को महसूस कर सकता हूँ...आपके पिता जैसे लोग अब इस दुनिया में कम ही मिलते है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

सुप्रतिम जी,
पोस्ट पढ कर मन भर आया। आंखें भीग गयीं।
जिस पर माता-पिता का आशीर्वाद हो, जिस पर उनकी दुआओं की क्षत्रछाया हो, उसको और क्या चाहिये। मां के ह्रदय से निकली आशीष कभी खाली नहीं जाती। आपने जो उन्हें खुशी दी है वह हजार गुणा हो कर आपकी तरफ लौटेगी, मेरी बात याद रखियेगा। यह सिर्फ कहने के लिये ही नही कह रहा हूं, अनुभव के आधार पर बता रहा हूं।
आप और आपके सारे परिवार को नये घर की बहुत-बहुत बधाई। यह कोई छोटी बात नहीं है, यह तो नियामत है।

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

कभी-कभी खुशियाँ भी रुलाती हैं ,इसे मैंने भी महसूस किया है. ईमानदारी और मुफिलसी का तो पुराना साथ है .माँ-बाप का आशीष सभी विपदाओं से दूर रखता है उन्हें ख़ुशी देकर ,आपको जो ख़ुशी मिली है ..........आप स्वयं नहीं बता पाएंगे.
नए घर के लिए शुभकामनायें ......

रंजू भाटिया said...

भावुक कर देती है इस तरह की बातें घर का सपना आँखों में पलता है और जब पूरा होता है तो खुशी में आंसू आ जाते हैं .बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाये

अनूप शुक्ल said...

बधाई! आपकी खुशी में हम भी शरीक हैं।

Richa Joshi said...

सचमुच इससे बड़ी खुशी और हो भी क्‍या। बधाई। मैं भी आपकी खुशी में शामिल होकर एक लड्डू खा लेती हूं। काश! सभी मांओं को ये खुशी मिले।

ghughutibasuti said...

आपको व आपके परिवार को बहुत बहुत बधाई। अपना घर बना लेना तो बहुत बड़ी बात है। इस घर में आपका परिवार ढेरों खुशियाँ पाए।
घुघूती बासूती

पुनीता said...

घर- यह शब्द ही इतना मोहक है और उसमें अगर अपना घर लग जाए तो बात ही कुछ और है. मैं समझ सकती हूं आपकी भावनाओं को क्योंकि मैं भी अपने घर का सुख कुछ महिनों से ले रही हूं और सच बताती हूं कि मुझे खुद पर कई बार विश्वास नहीं होता कि मैं भी अब अपने नये घर में रह रही हूं.
बहुत बहुत बधाई नये घर के साथ साथ पुत्र रत्न के लिए.

ravish ranjan shukla said...

दादा इस खुशी को समझा जा सकता है...मुनव्वर राना का शेर मैं हमेशा ऐसे मौको पर याद करता हूं..मुन्नव्वर मां के आगे इतना ना रोना कि बुनियाद के आगे इतनी नमी अच्छी नहीं होती....अभाव से ही क्रिएटिविटी आती है...मां के लिए आपने घर नहीं बल्कि ऐसी खुशी दी है जिसे आखिरी वक्त तक वो महसूस कर सकती है...आप एक लायक और क़ाबिल बेटे हैं..मां बाप की दुए आपको हमेशा रास्ता दिखाएंगी...ये उनके लिए भी है जो शायद दुनिया की चकाचौंध में अपनी जड़ो को पहचानने से कतराते हैं..उन सभी लोगों को मां की दुआओं की ज़रूरत है...आमीन.....