Friday, 5 December 2008

ऐसे नेता करेंगे मुल्क की हिफ़ाज़त?

जब भी अपने देश में नेताओं की हालत देखता हूं, तो बड़ी कोफ़्त होती है। सत्ता के लिए किसी भी हद तक नीचे गिरते इन लोगों को देख कर मन खट्टा हो जाता है। हर बार ये सोचता हूं कि अब नेताओं के बारे में कुछ नहीं लिखूंगा। लेकिन हर बार ख़ुद से हार जाता हूं और नेताओं की कारगुज़ारियों पर लिखने को मजबूर हो जाता हूं। लिखना इसलिए नहीं चाहता, क्योंकि उनके बारे में कुछ लिखना चिकने घड़े पर पानी डालने जैसा लगता है और लिखने से खुद को रोक इसलिए नहीं सकता क्योंकि नेताओं की करतूत देख कर ख़ून खौलने लगता है।
ये ताज़ी पोस्ट महाराष्ट्र में चल रही मौजूदा राजनीति के मद्देनज़र है। वैसे तो महाराष्ट्र पिछले कई महीनों से गंदी राजनीति की चपेट में है, लेकिन मुंबई के आतंकी हमलों के बाद इस राजनीति ने जो शक्ल अख्तियार की है, वो पहले से भी ज़्यादा भयानक है। मुंबई में हुए हमले के बाद एकबारगी ये लग रहा था, जैसे राज ठाकरे सरीखे लोगों को अक्ल आ गई होगी और उन्होंने मिल कर जीना सीख लिया होगा। हमले के तुरंत बाद राज ठाकरे की करतूतों को याद कर-कर के जिस तरह देश भर में लोगों ने एक-दूसरे को एसएमएस भेजे, उससे एक ऐसा माहौल बनता हुआ दिख रहा था। लेकिन अब मुंबई में जो कुछ हो रहा है उसे देख कर लगने लगा है कि वहां राज ठाकरे से भी बड़े-बड़े गए-बीते पहले से ही बैठे हुए हैं।
हज़ारों लोगों की जान जाने के बाद देश के गृहमंत्री शिवराज पाटील की नैतिकता जागी और भरे मन से उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा... उनकी देखा-देखी दूसरे 'खरबूजों' ने भी रंग बदले, लेकिन महाराष्ट्र के सीएम थे कि कुर्सी छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे। ये और बात है कि वे बार-बार "मैंने आलाकमान को अपना इस्तीफ़ा ऑफ़र कर दिया है," का जुमला कह-कह कर ख़ुद को सत्तामोह से इतर दिखाने की कोशिश में जुटे थे... लेकिन आखिरकार वही हुआ, जिसका डर उन्हें खाये जा रहा था। आलाकमान के इशारे पर विलासराव देशमुख को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी। कांग्रेस ने भी कुछ सोच-समझ कर नांदेड़ के विधायक अशोक चव्हान की ताजपोशी का फ़ैसला कर लिया। लेकिन अभी पार्टी का ये फ़ैसला आया ही था कि राणे ऐसे गरजे कि हर कोई सन्न रह गया। राणे ने ना सिर्फ़ अशोक चव्हान को नाक़ाबिल बताया, बल्कि इससे पहले के मुख्यमंत्री देशमुख को भी नाकारा करार दिया। वैसे तो कुर्सी के लिए नेताओं की ये तथाकथित बग़ावत कोई नई बात नहीं है, लेकिन राणे ने जिस मौके पर ये जूतमपैजार शुरू की है, उससे सबका सिर शर्म से झुक गया है।
जब देश आतंकवाद की आग में जल रहा हो, अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलिजा राइस समेत पूरी दुनिया के सियासतदान हिंदुस्तानी नेताओं को साथ मिल कर आतंकवाद से मुक़ाबला करने की सीख दे रहे हों, एक राष्ट्रीय संकट का माहौल हो, तब कुर्सी के लिए कांग्रेस में मची ये मारामारी सचमुच बहुत पीड़ादायक है। और राणे अपने ऊपर बाग़ी होने का टैग कुछ इस अंदाज़ में चस्पां कर रहे हैं, जैसे उन्होंने एक सड़ी हुई व्यवस्था के खिलाफ़ मुल्क और महाराष्ट्र के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया हो। ख़ुद को सीएम का दावेदार बताने में उनका जो 'कनविक्शन' दिखता है, उससे लगता है जैसे वे मराठी मानुष की सेवा करने के लिए मरे जा रहे हैं। दूसरी ओर, उन पर पलटवार करनेवाले भी कमतर नहीं हैं।
ये हालात कमोबेश हर हिंदुस्तानी के दिलो-दिमाग़ को झकझोर देता है। सवाल, बस एक ही है कि जब नेताओं का सारा ज़ोर सिर्फ़ और सिर्फ़ कुर्सी हासिल करने पर हो, वे भला मुल्क की की हिफ़ाज़त कैसे करेंगे?

7 comments:

Unknown said...

यह राजनीतिबाज भारत मां के शरीर में एक जौंक की तरह चिपट गए हैं और उस का खून चूस रहे हैं.

जितेन्द़ भगत said...

यह वाकई राष्ट्रीय संकट की स्‍थि‍ति‍ है।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

हर शाख पे ऊल्लू बैठे हैं
अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा.

ऎसी बदतर स्थिती की कल्पना शायद ही किसी ने की होगी.

ravish ranjan shukla said...

भाई दादा नेताओं से मैने बहुत पहले से ही आस छोड़ दी थी...जब संसद पर हमला हुआ था..इससे पहले मुंबई में भी विस्फोट हुआ था..हमारे नेता कभी नहीं सुधरेंगे..सोचता हूं देश को भी क्या पेशेवर सीईओ की ज़रूरत है...क्या हम गलतियों से कभी सीख लेंगे..नहीं लगता है..मोमबत्तियां जलाकर कब तक हम अपना रोष प्रकट करते रहेंगे..और कहलाते रहेंगे कि हम दुनिया के सबसे सहिष्णु और डेमोक्रैटिक देश हैं...क्या महान बनने की खालीपीली क़वायद ने हमें कमज़ोर कर दिया है...शायद....

डॉ० दिलीप गर्ग said...

भाई सा. अच्छा लिखा है....

अब नेताओं की सूरत नही, सीरत बदलनी चाहिए..
राष्ट्र भक्ति व देश भक्ति का ज़ज्बा जागना ही चाहिए...

Prakash Badal said...

भाई जान अपने मिशन पर डटे रहें। कड़ी मेहनत करें। मैं भी कभी पत्रकार था लेकिन अपनी परिस्थितियों के समक्ष हार कर रह गया। अब एक छोटा सा सरकारी क्लर्क बन कर रह गया हूं। मैं आप जैसे युवा पत्रकारों की सफलता को देखकर मुझे अपने सपने साकार होते दिखते हैं। आपकी सफलता की दुआ करता हूं।

shama said...

Samay aa gaya hai ki janta netaon se jawabdehi kare...! Maine apne haliya lekhonme, likhe gaye anek comments ya e-mails me aavahan kiya hai...1980 me Dr Dharamveer National commission ne suraksha yantranako adhik saksham banane ke liye kayi sujhaw diye the jo behad mahatvpoorn the. Supreme courtne unhen turant laagu karneki sarkaarko hidayat dee thi. Pichhale 28 saalonse bani harek sarkaarne supreme courtka avmaan kiya hai...kyon janta is baatpe PIL nahi daakhil karti??Ham kiska intezaar kar rahe hain??Maine kitnonko aavahan kiya ki aao mere saath haath milao...mai ek jwalant documentary bananeki koshishme hun...khule aam prashn karne jaa rahi hun...! Kyon ham itne hatbal hoke intezaar karte hain ki har kaam koyi doosara kare??Apne aapse kyon shuruaat nahi karte??