Tuesday, 2 December 2008

आतंकवाद - कैसे तय हो राजनीतिक जवाबदेही?

ये वो दौर है, जब हक़ीक़त और फ़साने का फ़र्क ख़त्म हो गया है। वीडियो गेम का शैतान जिस आसानी से लोगों को मारता है, ठीक उसी तरह हक़ीक़त की ज़िंदगी में भी शैतान इंसानों को मार रहे हैं। ये कोई पहला मौका नहीं है जब हिंदुस्तान पर आतंकवादियों ने हमला किया है... कभी असम, कभी जयपुर, कभी दिल्ली, कभी मुंबई, कभी बैंगलुरू, तो कभी हैदराबाद... हिंदुस्तान के नक्शे पर अब शायद ही कोई ऐसी जगह बची हो, जहां आतंकवादियों के नापाक कदम नहीं पड़े। मौत का तांडव नहीं हुआ। लेकिन ज़रा सोचिए... एक मुल्क, एक राष्ट्र के तौर पर हमने आतंकवादियों से निपटने के लिए क्या किया? सच पूछिए तो जो कुछ भी किया, उसमें कुछ भी ऐसा नहीं था जिससे आतंकवादियों को दोबारा ऐसा करने से रोका जा सकता। और यही वजह है कि आज हमारा मुल्क पूरी दुनिया के आतंकवादियों के लिए सॉफ्ट टार्गेट बन चुका है।
एक वारदात को 24 घंटे का वक्त भी नहीं गुज़रता है कि दूसरी वारदात रोज़मर्रा की ज़िंदगी थर्रा देती है। अब ये हमारी फ़ितरत है या कुछ और, हम हर बार हम अपना गुस्सा ज़ब्त कर ख़ामोश रह जाते हैं और ख़ैर मनाते हैं कि खुद सलामत रह गए। लेकिन अब मुंबई में हुए हमले के बाद जागने का वक़्त आ गया है। वैसे अब मुझे अपने चारों ओर एक अजीब सी बेचैनी दिखने लगी है। देर से ही सही अब लोग ये सोचने पर मजबूर होने लगे हैं कि इस हालात का सामना आखिर कैसे किया जाए? ऐसा क्या हो, जिससे हिंदुस्तान आतंकवादियों का सॉफ्ट टार्गेट न बन सके? यकीनन, पिछले कई दिनों से ये सवाल मेरे दिलो-दिमाग में भी कौंध रहे हैं। जब-जब आतंकवादी हमले की बात चलती है या टीवी पर मुंबई के हमले का मंज़र देखता हूं, तब-तब एक अजीब सी मनहूसियत छाने लगती है। और फिर काफी कोशिश के बाद ही नॉर्मल हो पाता हूं।
मैं कोई सुरक्षा विशेषज्ञ नहीं हूं और ना ही स्ट्रैटेजिस्ट हूं। लिहाज़ा आतंकवाद से बचने के लिए कोई बहुत टेक्नीकल बात नहीं कर सकता। लेकिन मोटे तौर पर जो चंद बातें मुझे समझ में आती है, उन्हें आपके साथ साझा करना चाहता हूं। और इन बातों में सबसे ऊपर है ख़ुफ़िया एजेंसियों की भूमिका। हमारे देश में होनेवाले हर आतंकी हमले के साथ ही ख़ुफ़िया एजेंसियों की पोल खुल जाती है। कभी हमले के बाद एजेंसियां सरकारों को पहले ही आगाह किए जाने की बात कहती हैं, तो कभी गृहमंत्री कहते हैं कि हमले ठीक कब और कहां हमले होंगे, ये नहीं बताया गया था। ज़ाहिर है कि ये हमारे देश के सिपहसालारों और एजेंसियों के बीच तालमेल की घोर कमी का सुबूत है। और अब इस कमी से निबटने की ज़रूरत शिद्दत से महसूस होने लगी है। ज़रूरत इस बात की भी है कि सुरक्षा एजेंसियों को नख-दंत दिए जाएं, ताकि किसी भी आपातकालीन हालात का वे मज़बूती से मुक़ाबला कर सकें।
आतंकवाद पर राजनीति ख़त्म करना भी हिंदुस्तान को मजबूत करने की अहम ज़रूरतों में से एक है। इसके लिए सबसे पहले हमें दहशतगर्दी को किसी मज़हब के चश्मे से देखने की आदत बंद करनी होगी। साथ ही लोगों के चुने हुए नुमाइंदों को भी अपने वोट बैंक की चिंता कम करते हुए आतंकवादियों के खिलाफ़ कड़े फ़ैसले करने होंगे। जब तक मुल्क के स्वाभिमान पर हमला करनेवाले अफ़ज़ल गुरु जैसे आतंकवादियों को फांसी के फंदे पर लटकाया नहीं जाएगा, तब तक दहशतगर्दी का कारोबार करनेवाले लोगों तक सख्त मैसेज नहीं पहुंचेगा। उनके नापाक हौसले भी कम नहीं होंगे। ठीक इसी तरह आतंकवादियों से नेगोशिएट करने और हर आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान से सिर्फ़ बातचीत के सहारे रिश्ते सुधार लेने का ख्वाब देखने की आदत भी बंद करनी होगी। इस मामले में हमें इज़रायल और अमेरिका जैसे मुल्कों के सबक लेना चाहिए, जिन्होंने अपने आस-पास पनपनेवाले आतंक की अमरबेल को उखाड़ फेंकने में कोई कमी नहीं छोड़ी।
लेकिन ये सभी ख्वाब तभी पूरे हो सकेंगे, जब राजनेताओं को शर्म आएगी। एक मुकम्मल राजनीतिक इच्छाशक्ति पैदा होगी। लेकिन जब नकवी, अच्यूतानंद और पाटील जैसे लोग हमलों के बाद दहशतज़दा लोगों पर ही ऊंगली उठाने लगें और हर हाल में अपना दामन बचाने की कोशिश करें, वहां इस तरह की कोई भी कोशिश ख्याली पुलाव से अलग कोई भी शक्ल नहीं ले सकती। अब सवाल ये उठता है कि आख़िर क्या हो कि राजनेता जिम्मेदार बनें और उनकी एकाउंटिब्लिटी फिक्स हो? यकीनन अब देश को इस सवाल पर सोचने की ज़रूरत है। साथ ही ज़रूरत है कि अपने हर उस राजनेता का गिरेबान पकड़ने की, जो वोट की ख़ातिर तो जनता के पैरों पर लोट जाते हैं, लेकिन कुर्सी तक पहुंचते ही उसी जनता को आंखें दिखाने से गुरेज नहीं करते। अब जगने का वक़्त आ गया है।

1 comment:

sarita argarey said...

जनता को नीम बेहोशी से जगाना होगा । राजनेता प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनता का सेवक होता है । लेकिन हमारी बेवकूफ़ियों और नादानियों ने इन्हें जनता का मालिक बना दिया है । अच्चे लोगों को निर्दलीय चुनाव लडवाओ,जाति ,भाषा ,धर्म ,प्रांत की राजनीति को दरकिनार करो । अपने आप हालात काबू में आ जाएंगे ।