Thursday 20 November, 2008

हालात से नाउम्मीद होती ज़िंदगी!

आज अपने ब्लॉग पर चंद पंक्तियां मेरे दोस्त रवीश रंजन शुक्ला की कलम से। दिल्ली में रह कर पत्रकारिता कर रहे रवीश भी मेरी तरह एक छोटे शहर से हैं। रवीश की ख़ासियत ये है कि वे एक बेहद संवदेनशील इंसान हैं और अपने आस-पास होनेवाले तमाम वाकयों से खुद को अलग नहीं रख पाते। कुछ रोज़ पहले रवीश को एक वाकये ने बुरी तरह झकझोर कर रख दिया। उन्होंने मुझसे दिल की बात कही और मैंने ही उन्हें ये सब ब्लॉग पर लिखने का सुझाव दिया। बाकी जो भी है, आपके सामने है --

अभी थोड़े दिन पहले मैं दीपावली में अपने घर गया था। घर जाते ही पुराने दोस्तों की याद आती है। इन्हीं में से एक मेरा दोस्त था राकेश साहू। दरम्याना कद, मुस्कुराता सांवला चेहरा, ब्लैक बेल्ट खिलाड़ी। जिंदगी में सफलता या असफलता से कोई लेना देना नहीं। हमेशा दूसरों के काम आना, साहित्य पढ़ना और रंगकर्म में वक्त निकालना। बीएसएसी भी झोंके में पास कर डाली थी। हाल के दिनों में संपर्क उससे कम हो गया था, क्योंकि मैं अपने काम से फ़ारिग नहीं हो पाता और वो अपनी मटरगश्ती से। राकेश साहू अजीब था। वैसा ही अजीब जैसे किसी कस्बाई शहर का आम लड़का होता है।
जीवन में शायद उसने एक गलती की थी। शादी करने की। खैर, घर पहुंचने के दो दिन बाद एक दिन अचानक मेरे पास एक दोस्त महेंद्र का फोन आया। उससे पता चला कि राकेश साहू की हत्या हो गई। पुलिस ने आदतन बिना शिनाख्त किए उसकी लाश को जला डाला। मैं और महेंद्र हैरान। हमारी आंखों के सामने उसका चेहरा घूमा। हमने बहराईच की कोतवाली में जाकर खुद शिनाख्त करने का फैसला किया। कोतवाली की ओर जाते कई बार दिमाग ने कहा कि भगवान करे राकेश साहू की फोटो न हो। लेकिन मुंह में पान दबाए कोतवाल साहब ने बड़े नखरे दिखाकर फोटो दिखाया तो वो राकेश ही था। आंखें खुली, गर्दन पर गहरा ज़ख्म, हमारी सुधबुध थोड़े समय के लिए चली गई। थोड़ी देर बाद कोतवाल साहब को याद आई कि उनके सामने खड़े दो सज्जन में से एक पत्रकार है और दूसरा अधिकारी, तब कुर्सी मंगवाई, हमें बिठाया। और फिर शुरू की हत्या को दुर्घटना का जामा पहनाने की कहानी।
दरअसल शादी के बाद राकेश की अनबन उससे ससुराल वालों से थी और राकेश की शादी का मामला कोर्ट में चल रहा था। उसने खुद भी कई बार हत्या हो जाने की आशंका जताई थी। पुलिस को भी ये बात मालूम थी, लेकिन बहराईच पुलिस ने ना तो लाश की अलग-अलग एंगेल से फोटो करवाई ना ही कोई सबूत इकट्ठा करने की कोशिश की। राकेश के शरीर पर से शर्ट गायब थी। पैरों के जूते और मोजे नदारद थे। जेब से पैसे और मोबाइल गायब थे। कुछ भी तो ढूंढने की कोशिश नहीं की। क़त्ल का मकसद मौजूद था। मौके-ए-वारदात और पास की दीवार पर छिटके खून से पहली नज़र में ही ये हत्या का मामला लग रहा था। लेकिन पुलिस का कहना था कि टैक्टर के हल से कटकर उसकी मौत हुई है।
पुलिस का यह नाकारा रवैया देखकर हम हैरान थे। हम शाम को अखबार के दफ्तर पहुंचे। कुछ एक अखबारी दोस्तों के ज़रिए ख़बर छपवाने की कोशिश की लेकिन दो अखबारों को छोड़कर किसी को भी ये खबर नहीं लगी। सभी ने रोज़ाना मिलने वाले पुलिसवालों की दोस्ती का ख्याल रखा और कुछ भी पुलिस की जांच के खिलाफ न लिखकर वही लिखा जो पुलिस ने बताया। दूसरे दिन हमें फिर निराशा मिली लेकिन फिर भी हमने बहराईच के वयोवृद्ध साहित्यकार डा. लाल के ज़रिए कैंडल मार्च निकालने का मन बनाया और वहां के एसपी चंद्र प्रकाश से भी बात की। उन्होंने ज़रूर हमें भरोसा दिलाया कि यह मर्डर है और हम जांच कर रहे हैं, लेकिन घटना के २० दिन होने को हैं, अभी तक राकेश के हत्यारों का पता नहीं चला है। इसी बीच हमारे दोस्तों को अब आसपास के लोग ही समझा रहे हैं कि जाने वाला तो चला गया अब तुम क्यों दुश्मनी ले रहे हो?
हम निराश इसलिए भी हैं कि एक प्यारे दोस्त को तो हमने खोया, लेकिन उसके लिए कुछ ही न कर पाने का मलाल ज्यादा है। छोटे शहर से लेकर बड़े शहर तक ना जाने कितने लो प्रोफाइल राकेश इसी तरह मर जाते हैं, लेकिन पुलिस की तफ्तीश कितना भरोसा पैदा करती है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। ब्लॉग पर इस तरह का वाकया लिखने का मक़सद एक ही है कि अगर कोई इस तरह के मामलों में दिलचस्पी दिखाए और कुछ भी कर सके तो अच्छा है। साथ ही ये घटनाएं बताती है कि हम कितने लाचार हो जाते हैं। राकेश भले ही चला गया हो लेकिन हम ज़ुबानी जमाखर्च और रोज़ाना की पेशेवर कामकाज में इतने मसरुफ़ हैं कि हमसे कुछ होगा ऐसा नहीं लगता...

10 comments:

विवेक सिंह said...

वक्त हर दुख का इलाज करेगा .

संगीता पुरी said...

आज पुलिस और प्रशासन का यही रवैया चल रहा है। एक के लडने से कुछ होनेवाला नहीं। सब कुछ भूल जाने में ही भलाई है।

shailendra tiwari said...

ise bura bhi nahi kah sakata, ye bhi nahi kah sakata ki tum apana stend vapas le lo. lakin ye bhi nahi kah sakata ki is ladai ko jaari rakho. jin halaton mai hatya hui hai, usse ham achchi tarah janate hai ki vo kuch bhi karane mai saksham hai. phir kya tum bhehrich mai dusmani lakar kya karoge. iske liye jarori hai ki parde ke peeche khade hokar kaam karo. sp par praser banane ke liye dosare aur bhi tarike ho sakate hai. jo mujhe batane ki jaroorat nahi hai. un dosare raston ko talaso. jaroor madad milegi. baaki aur kya kah sakta hun, mai tumhare har nirnay mai sath hun.

shailendra tiwari said...

ise bura bhi nahi kah sakata, ye bhi nahi kah sakata ki tum apana stend vapas le lo. lakin ye bhi nahi kah sakata ki is ladai ko jaari rakho. jin halaton mai hatya hui hai, usse ham achchi tarah janate hai ki vo kuch bhi karane mai saksham hai. phir kya tum bhehrich mai dusmani lakar kya karoge. iske liye jarori hai ki parde ke peeche khade hokar kaam karo. sp par praser banane ke liye dosare aur bhi tarike ho sakate hai. jo mujhe batane ki jaroorat nahi hai. un dosare raston ko talaso. jaroor madad milegi. baaki aur kya kah sakta hun, mai tumhare har nirnay mai sath hun.

ravish ranjan shukla said...

Haalat se naumeed to hon..par itna nahi..ki kuch karu hi na...supratim ji apne mari chooti si kosis ko jagah di yahi umeed paida karti hai...

ravish ranjan shukla said...

bahi salendra tuse yahi umeed hai lakin..parde ke pichhe khade hoker kaam nahi chelega..filmiwale mafia nahi hai...ki jatke me uda de..lakin hun creative log hai..ham apna kaam kalam aur sochh se hi kar sakta hun....achha log doston ka samarthan....

सतीश पंचम said...

यह बात तो सच है कि ऐसे रोज न जाने कितने लोगों को दुर्घटना का शिकार बता कर फाईल बंद कर दी जाती है। कुछ दिन पहले एक जगह Talk Show में एक रिटायर हुए Cabinet Secretary को टीवी पर दुखी मन से यह कहते सुना था कि अब सरकारी आदमी काम को करने मे पूरी तरह दत्त चित्त होकर नहीं करते, उन्हें समय पर सब वेतन वगैरह मिल जाता है तो गरज किसे है यह सब मन से काम करने में।
सचमुच आज गरज किसे है कि वो अपना टाईम इन सब पर खोटी करे....परिस्थिति वाकई दुखद है।

Anonymous said...

ye aisa hi chalta rahega ,Nobody can stop...ravish bhai bas acha ye laga ki koi to hai jo abhi bhi itni imandari se apna kam kar raha hai selflessly,lets create a bunch of people who are really intrested to work selflessly

Unknown said...

ravish bhai tuhare saath meri samvedna hai ..lakin

Anonymous said...

sale kutte police wale, haramkhor press wale aur aadamkhor katil, in sabko inke karmo ki saja jarur milegi...jarur milegi... himmat mat hare...ladai jari rakhe... nahi bhulna nahi... bilkul nahi... dost ki jaan ka badla jarur lena... ladai jari rakhna dost... jari rakhna