कोई ब्लॉग क्यों लिखता है? आप क्यों लिखते हैं? या फिर मैं ही ब्लॉग क्यों लिखता हूं?
मैं अक्सर इन सवालों के बारे में सोचता हूं। और मेरा दावा है कि आप भी ज़रूर सोचते होंगे। ये सवाल बेशक एक ही हैं। लेकिन इन चंद सवालों में कुछ इतने जबाव छिपे हैं कि बस पूछिए मत!
मन में उमड़ते-घुमड़ते ख्यालात को आकार देने के लिए, विरोध प्रकट करने के लिए, अपनी रचनात्मकता को अंजाम तक पहुंचाने के लिए, शेखी बघारने के लिए, पॉपुलर होने के लिए, दूसरों की बराबरी करने या फिर उनसे आगे निकलने के लिए, विवादित मसलों पर एक शिगूफ़ा छोड़ कर मज़ा लेने के लिए, जो बात दिल में ही घुट कर रह गई हो उसे उगलने के लिए, टाइम पास करने के लिए, ब्लॉगर कहलाने के लिए या फिर सिर्फ़ और सिर्फ़ लिखने के लिए? और शायद इन्हीं अनगिनत जवाबों में ब्लॉगिंग की दुनिया का अनोखापन भी छिपा है।
सच तो ये है कि अपना ब्लॉग शुरू करने से पहले भी मैं काफ़ी दिनों तक इस मसले पर सोचता रहा। ये भी सोचता रहा कि आख़िर मैं ब्लॉगिंग क्यों करूं? मेरे दोस्त अक्सर कहते थे कि सुप्रतिम तुम अच्छा लिख लेते हो, अपना कोई ब्लॉग क्यों नहीं शुरू करते? लेकिन दोस्तों से ऐसी बातें सुनते हुए तकरीबन साल भर का वक़्त गुज़ार देने के बाद जाकर ही मैं अपना ब्लॉग शुरू कर सका। हो सकता है कि दूसरों को इतना वक़्त ना लगता हो। वैसे भी हर शख्स के काम करने का अपना तरीक़ा होता है और हर काम का अपना वक़्त। शायद यही वजह है कि मुझे भी अपना ब्लॉग शुरू करने में इतना वक़्त लग गया। और 11 सितंबर 2008 को ब्लॉग शुरू करने के बाद इस मसले पर लिखने में और इतना...
अब तकरीबन दो महीने से ब्लॉग की दुनिया को नज़दीक से देख रहा हूं। इन दिनों में मैंने काफी कुछ देखा और सीखा है। माहिर ब्लॉगरों के कलम की धार देखी है और कोरी बकवास भी। सिर्फ़ लिखने के लिए लिखने वालों को भी देखा है और लोगों की नब्ज़ पर हाथ रखनेवालों को भी। कुछ मिशनरियों को भी देखा है और कुछ कनफ्यूज़्ड लोगों को भी। सच पूछिए तो हर शख्स, हर ब्लॉग और हर पोस्ट अपने-आप में अनोखापन लिए है। कहने को कोई ये भी कह सकता है कि वो अपना ब्लॉग स्वांत: सुखाय लिखता है, लेकिन ज़रा सोचिए कि ऐसी रचना या फिर ऐसा ब्लॉग, जिसे ना तो कभी किसी ने देखा हो और ना ही पढ़ा हो, वो किस काम का?
लेकिन इतना देखने और समझने के बावजूद मैं अपनी कैटेगरी अब तक तय नहीं कर पाया हूं। बहरहाल, मैं तो अपना ब्लॉग लिखने की वजह जानने की कोशिश में हूं... लेकिन अगर आप अपने बारे में हंड्रैड परसेंट श्योर हैं, तो मुझे ज़रूर बताएं...
Saturday, 8 November 2008
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22 comments:
मन हमेशा करता था लिखने के लिए. अच्छा लगता था लिखना. ब्लाग ने यह अवसर दे दिया. स्वान्तः सुखाय ब्लाग गाथा.
ये जानने के लिये कि क्या दूसरे भी मेरे जैसा सोचतें हैं |
इस प्रश्न का जवाब आपकी इस पोस्ट में ही है - मन में उमड़ते-घुमड़ते ख्यालातों को आकार देने के लिए बाकी सब चीजें तो इसकी पूरक हैं।
अच्छी पोस्ट।
अपनी बात कहूं तो शुरू किया था स्वांत सुखाय के लिये, मगर अब अपनो के लिये लिखता हूं.. :)
हम तो मजा लेने के लिए लिखते हैं फिलहाल . चाहे टिप्पणी लिखें या ब्लॉग . वैसे हमारे एक गुरु जी हैं उनको किसी सवाल का जबाव नहीं मालूम हो तो सबसे पहले यही कहते हैं वेरी गुड क्वेश्चन . इसका जबाव आप लोग ही बताइए और एक एक कर सबको पूछ लेते हैं और निचोड कर आखिर में खुद बता देते हैं . किसी को भी नहीं आता तो कह देते हैं भाई मुझे भी नहीं आता :)
ब्लाग ,बेलाग बात कहने का बेहतरीन ज़रिया है । प्रिंट और खबरिया चैनलों की भाटगिरी के शोर में आपकी कलम कब दम तोड देती है ,पता ही नहीं चलता । ये माध्यम है उन मुद्दों पर अपनी बात कहने का ,जो आपको उद्वेलित और आंदोलित करते हैं । विचारों के लेन देन की आज़ादी से कई नए पहलुओं से रुबरु होने का मौका मिलता है । स्वान्तः सुखाय की बात में कोई दम नहीं । हर लेखक पाठक चाहता है । वर्ना ये अरण्य रोदन के सिवाय कुछ नहीं ।
स्वान्तः सुखाय और जनजागरण के लिये…
ये ही तो मजा है ब्लौग लिखने में कि इसमे जरुरी नही की आप अपने को किसी खाँचे ढाले ।
dil ke jazbat kuch lafz bankar ahe hum isliye likhte hai,vaise har ek ki vajah alag hoti hai.
हाथ में लेकर कलम मैं हालेदिल कहता गया
काव्य का निर्झर उमड़ता आप ही बहता गया.
-इन्हें ही एक जगह समेट कर रखने के लिए. :)
मैं ब्लॉग लिखता हूँ
-अपने आप को पहचानने के लिए,
-मैं क्या सोचता हूँ, लोगों से ये जानने के लिए,
-लोग क्या/कैसे सोचते हैं,ये भी जानने के लिए।
सच कहूं तो ब्लॉग आत्म अनुशीलन का एक हिस्सा बन गया है मेरे लिए
वैसे कई दिनों से ऐसे स्थान की ज़रूरत थी जहाँ मुझे बात कहने का अपना
मंच हो ब्लॉग के रूप में मिला यह मंच और मिले किसम किसम के मित्र
किंतु यहाँ भी सामंती गिरोह बाज़ी है मुझे इससे कोई लेना देना नहीं
अपने अनुभवों को पूरी दुनिया से शेयर करने के लिए।
प्र०= ब्लॉग क्यों लिखते हैं
उ०= आप सोचते क्यों हैं?
(सोचने का शब्दावतार ब्लॉग लेखन है। लेखक या साहित्यकार होने का मुग़ालता नहीं। यह बातचीत है रूप चाहे कुछ हो।)
बहुत अच्छा लिखते हो और अच्छा प्रश्न किया है !
अगर अपने लेखन पर विश्वास है तो लिखना अवश्य शुरू करो, आप समय को बदल सकते हैं ! मगर कृपया ध्यान रखें ...
-कहीं आप किसी विचारधारा, जाति, धर्म के अंध भक्त तो नही..
-कहीं आपकी पीठ पर किसी और का नाम तो नहीं...
-कहीं आपके दिल में औरों के प्रति नफरत और गुस्सा तो नहीं ...
अगर उपरोक्त गुणों के साथ कोई कलम लेकर बात जाए तो देश का अकल्पनीय नुक्सान कर सकता ! और अगर आप ईमानदार हैं तो आपका स्वागत है !
सुप्रतिम भाई, फुड फॉर थॉट दे दिया आपने...सवाल मेरे लिए भी है, आख़िर क्यों लिखता हूं ब्लॉग? फेमस होने के लिए, भड़ास निकालने के लिए, फॉर दे सेक ऑफ रायटिंग, समाज में सार्थक सोच एक दशा-दिशा देने के लिए....कनफ्यूज़ हूं...आख़िर कौन हूं मैं, और कोई मुक्कमल पहचान है तो फिर लिखता क्यूं हूं। सोचने दीजिए...सवाल सिर्फ़ दिखने में आसान है।
अभिव्यक्ति को क्या चाहिए- शब्द
और ...
और...
शब्द को ब्लाग जैसा माध्यम मिल जाय तो बुरा क्या है !
आपकी बात पर "सेम पिंच" ....कहने का मन कर रहा है.सचमुच यह सवाल मन में स्वाभाविक रूप से उमड़ता है. पर इसका उत्तर यही मिलता है कि, लिखना पढ़ना अच्छा लगता है,इसमे परम संतोष की अनुभूति होती है,बस.इसलिए इसके साथ जुड़ी हूँ,जिस दिन यह मन से उतर जाएगा,इसका साथ छोड़ दूंगी.
तुम्हारी लेखनी बेहद प्रभावशाली है... तुम्हें यहां नहीं कहीं और लिखना चाहिए... मैं तुम्हारे लेख पढ़कर बेहद प्रभावित हूं.. तुम्हारे लेख मेरे दिल को अंदर से झकझोर देते हैं। मेरे अंदर जीने की लालसा पैदा करते है... मेरे अंदर की भावनाओं को नया आकार देते है.... तुम जैसे लेखकों की वजह से ही समाज को नया आकार मिल रहा है....
wahhhh bahi dada apne hi munya mittho ban rahe hoo....kyon nahi kahate ho ki blog ke jariye prasidhhi ki sidia chadna chate...ho..babaak bano....blog kyon likhte ho.....soochoo lakin yee khalipane ke soochh hai...kuch creative sochooo aur likho....netagiri nahi...chalegi..blog par...
..............अरे छोडो भी ना यार.....!!
शायद ब्रेन हेमरेज से बचने के लिए...आप दिनभर खबरों की दुनिया में जीते हैं, दुनिया की खबरों को एक अहसास की तरह महसूस करते हैं. ऐसे में दिल के जज्बात जाहिर करना शौक नहीं मजबूरी कही जाएगी। वर्ना सबकुछ दिलो-दिमाग पर इस कदर हावी हो जाएगा कि किसी दिन अंदर ही अंदर धमाका होगा और बाहर कोई उस धमाके की आवाज भी नहीं सुन पाएगा...
इसलिए बेहतर यही है दोस्त, कि दिल में कुछ ना रखा जाए, जो कुछ जहन में है, उसे किसी पन्ने पर लिखकर सबके साथ बांट लिया जाए।
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