Wednesday 5 November, 2008

दुनिया की नाभी - उज्जैन

कुछ रोज़ पहले उज्जैन गया था। कोई पांच हज़ार साल पुराना उज्जैन। आज ही लौटा हूं। तकरीबन पांच साल पहले भी एक बार उज्जैन गया था लेकिन तब जल्दबाज़ी की वजह से बस स्टैंड से ही लौटना पड़ा था। जिस शहर का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्तर पर पूरी दुनिया में एक अलग मुकाम हो, उस शहर को सालों से देखने की इच्छा थी। जो इस बार पूरी हो गई। काम के बाद जो वक्त बचा, वो उज्जैन देखने में कुछ ऐसा गुज़रा जैसे कोई खुशनुमा वक्त महज़ लम्हों में गुज़र जाता है।
दुनिया की नाभी
कहते हैं कि उज्जैन ही वो जगह है, जो इस दुनिया के बिल्कुल बीचों-बीच स्थित है। और इसी वजह से इस शहर को दुनिया की नाभी भी कहते हैं। वैसे तो हमारे देश में तकरीबन सभी जगहों पर साल में एक दिन ऐसा ज़रूर आता है, जब कुछ मिनटों के लिए परछाई कदमों के बिल्कुल नीचे आ जाती है। लेकिन शायद दुनिया के बीचों-बीच मौजूद होने की वजह से उज्जैन में ये दिन सबसे ज़्यादा अजीब होता है। कुछ इतना अजीब कि उस रोज़ साया भी कुछ वक्त के लिए इंसान का साथ छोड़ जाता है।
महाकाल
उज्जैन में दुनिया का इकलौता पौराणिक महत्व वाला महाकाल मंदिर है। कहते हैं कि इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग को किसी भक्त ने स्थापित नहीं किया, बल्कि स्वयंभू भगवान शंकर यहां खुद ही स्वयंभू हुए थे। बाद में राजा-महाराजाओं ने इस मंदिर को संवारने का काम किया। हिंदुओं के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक इस महाकाल मंदिर के साथ ही एक ऐसा सरोवर भी है, जिसे ब्रह्माजी ने खुद अपने हाथों से बनाया था। महाकाल को उज्जैन का राजा भी कहा जाता है। और शायद यही वजह है कि महाकाल मंदिर के सिवाय यहां कोई और राजमहल नहीं है। जबकि यहां महा प्रतापी सम्राट विक्रमादित्य समेत कई राजाओं ने शासन किया। यहां सिंहासन बत्तीसी का वो मशहूर टीला (अब अतिक्रमित) भी है, जिसके साथ कई लोककथाएं जुड़ी हैं। कहते हैं कि इस सिंहासन पर बैठनेवाले किसी भी सम्राट से 32 अलग-अलग मूर्तियां कर्तव्यपराणयता का वचन लेती थी और इस तरह कोई भी अपनी प्रजा से नाइंसाफ़ी नहीं कर सकता था।
काल भैरव
उज्जैन में ही भगवान शंकर के एक दूसरे रूप यानि काल-भैरव का मंदिर भी मौजूद है। इस मंदिर के साथ जुड़ी कहानी तो और भी चौंकानेवाली है। कहते हैं कि ब्रह्माजी ने जब चार वेदों की रचना कर ली थी, तो उन्हें भी कुछ वक्त के लिए खुद पर घमंड हो गया था और वे पांचवें वेद की रचना करना चाहते थे। लेकिन देवताओं ने इसे सृष्टि के लिए ठीक नहीं मानते हुए उनसे ऐसा नहीं करने का आग्रह किया। पर ब्रह्माजी जब अपनी बात पर अड़े रहे, तो सभी देव भगवान शंकर के द्वारस्थ हुए। लेकिन ब्रह्मा अडिग रहे। और तब भगवान शंकर ने अपना तीसरा नेत्र खोला और इसी नेत्र से काल-भैरव का जन्म हुआ। काल-भैरव को ब्रह्माजी को रोकने की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन उन्होंने ब्रह्माजी को रोकने के लिए उनके एक अवतार की ही हत्या कर डाली। ये बड़ी भयानक बात थी। उन पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा और वे अभिशप्त हो गए। लेकिन तभी शंकर जी ने उन्हें शिप्रा नदी के किनारे श्मशान पर बैठ कर कठोर तप करने और इस तरह शापमुक्त होने की युक्ति बताई। तब से काल-भैरव यहीं स्थापित हो गए। उन्होंने यहां बैठ कर कठोर तपस्या की और उनका जीवन शापमुक्त हुआ। इस मंदिर का ज़िक्र शास्त्रों में भी मिलता है।
नवग्रह धाम
उज्जैन में पौराणिक काल का मशहूर शनिदेव मंदिर और नवग्रह धाम भी मौजूद हैं। इस परिसर में शनिदेव की मूर्ति के अलावा सभी के सभी नौ देवताओं की अलग-अलग मंदिर भी मौजूद हैं। खास बात ये है कि ये सभी देव इन मंदिरों में भगवान शंकर यानि शिवलिंग के तौर पर ही स्थापित हैं। मान्यता है कि नवग्रह मंदिर में पूजा करने से, इंसान पर सभी ग्रहों की चाल ठीक रहती है।
छोटा शहर
तकरीबन आठ लाख की आबादीवाला उज्जैन एक ख़ूबसूरत और 'कूल' शहर है। दिन में चाहे कितनी भी गर्मी क्यों ना हो, उज्जैन की रात खुशनुमा होती है। ऐसा मैंने भी महसूस किया। उज्जैन में बोहरा समुदाय का एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल और कई जैन मंदिर भी हैं। महज़ तीन किलोमीटर के वृत में बसा उज्जैन कुछ इतना ही छोटा है कि पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण किसी भी दिशा में तीन किलोमीटर का सफ़र तय करते ही आप शहर से बाहर पहुंच जाते हैं। उज्जैन के ज्यादातर लोग धार्मिक प्रवृति के हैं। सिंहस्थ कुंभ का यहां लोगों के जीवन में बड़ा महत्व है और उनका वक्त पूजा-पाठ में गुज़रता है। (रात को फ्रीगंज में गरमा-गरम दूध मिलता है। कभी आप उज्जैन जाएं तो इसका ज़रूर मज़ा लें) यहां हॉट ड्रिंक्स का चलन अब भी कम ही है।
विक्रमादित्य भवन
पुराने शहर से बाहर एक राजमहल है। जिसे सरकार ने विक्रमादित्य भवन का नाम दिया है। ये महल स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है। वैसे तो इस महल को ग्वालियर घराने के राजाओं ने बनाया था, लेकिन जब राजशाही ख़त्म हुई तब सरकार ने इसका नामकरण विक्रमादित्य भवन कर दिया। अब यहां से प्रशासनिक काम-काज निपटाए जाते हैं।
बदहाल शिप्रा
हिंदुस्तान की दूसरी अहम नदियों की तरह पौराणिक महत्व की नदी शिप्रा भी बदहाल है। पानी नहीं है। जहां है, वहां घेर कर पानी जमा किया गया है। जो बेहद प्रदूषित है। लेकिन आस्था के आगे कुछ नहीं चलता। सभी सानंद इसमें नहाते हैं। शिप्रा शुद्धिकरण की बात चल रही है। देखिए क्या होता है?
चिड़ियों का रेलवे स्टेशन
उज्जैन एक मायने में तो बेहद अजीब है। वैसे तो शाम होते ही पेड़ों के इर्द-गिर्द चिड़ियों का चहचहाना शुरू हो जाता है। लेकिन उज्जैन का रेलवे स्टेशन शाम को किसी विशाल पेड़ से कम नहीं होता। यहां लाखों चिड़ियों का डेरा होता है और ठीक शाम के वक्त अगर आप प्लेटफॉर्म पर खड़ें हो, तो चिड़ियों का शोर कुछ इतना ज्यादा होता है कि आपको चिल्ला कर बात करनी पड़ती है। पूरा स्टेशन चिड़ियों से पटा होता है। ऐसा क्यों है, नहीं पता।

1 comment:

Anonymous said...

सुप्रतिम जी ,
अच्छी पोस्ट । दिलचस्प बात ये भी है कि काल बैरव मंदिर में मदिरा का भोग लगता है । महाकाल की भस्म आरती में एक ज़माने में हर रोज़ ताज़ी चिता की राख का प्रयो ग होता था । योगेश्वर श्रीक्रष्ण ने जिन गुरु सांदीपनि के पास रह कर अध्ययन किया था ,वह आश्रम भी उज्जैन में ही है । एक वट का पेड भी है ,जिसका संबंध अकबर से बताया जाता है ।