Tuesday, 9 December 2008

दूसरों की निंदा करने का मंच बनते ब्लॉग!

पिछले 8 नवंबर को मैंने एक पोस्ट लिखा था -- "आप ब्लॉग क्यों लिखते हैं?" इस पोस्ट के ज़रिए मैं लोगों से ब्लॉग लिखने की सही-सही वजह जानना चाहता था। पोस्ट के बाद कुछ लोगों को मैंने अपनी ही तरह ब्लॉग लिखने की वजह ढूंढ़ता हुआ पाया, तो किसी को अपनी रचनात्मकता को आकार देने के लिए लिखता हुआ। लेकिन ब्लॉग की दुनिया को नज़दीक से देखने और समझने के बाद एक बात का पता ज़रूर चल गया। वो ये कि हम में से ज़्यादातर लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ दूसरों की निंदा करने और उन्हें नीचा दिखाने के लिए ही ब्लॉग लिखते हैं। आपको मेरा ये नज़रिया अजीब लग सकता है, लेकिन मुझे यकीन है कि आप दिल से मेरी इस बात रो झूठला नहीं सकेंगे।
सौ में से अस्सी ब्लॉग तो सिर्फ़ मीन-मेख निकालने के लिए चल रहे हैं। कोई लोकतंत्र की खाल खींच रहा है, तो कोई मीडिया की खाल में भूसा भर रहा है, कोई साथी ब्लॉगिए को गरिया रहा है, तो कोई अपने ही बिरादरी को लानत भेज कर 'प्रगतिशील' बनने की कोशिश कर रहा है। कुल मिलाकर, माहौल बड़ा निराशाजनक है। अभी कल की बात ही ले लीजिए... मैंने एक ब्लॉग में किसी साथी को आतंकवाद के खिलाफ़ अभियान छेड़ने पर मीडिया की खिंचाई करते हुए पाया। गरज ये थी कि मीडिया आतंकवाद पर एसएमएस मांग कर लाखों रुपए के वारे-न्यारे कर रहा है। मोबाइल कंपनियों के हाथों की कठपुतली बन गया है। इन जनाब को तो इंडिया गेट और गेटवे ऑफ इंडिया पर मोमबत्ती जला कर आतंकवाद का विरोध करने में भी शोशेबाज़ी नज़र आई।
अब सवाल ये उठता है कि रोज़ाना इश्क फ़रमाने और अपने दोस्तों को नॉनवेज जोक्स भेजने के चक्कर में एसएमएस कर लाखों रुपए पानी की तरह बहानेवाली आबादी से अगर कुछ एसएमएस राष्ट्रीयता के नाम पर मंगा लिए गए, तो इसमें कौन सा पहाड़ टूट गया? क्या ज़िंदगी में हर काम या हर हरकत को सिर्फ़ और सिर्फ़ रुपए-पैसे के नज़रिए से ही देखना ठीक है? ये सही है कि बाज़ारवाद हर किसी पर हावी है और मीडिया भी इससे अछूता नहीं है। लेकिन मीडिया पर लानत बरसानेवाले लोगों को शायद कभी भी मीडिया के सामाजिक सरोकार नज़र नहीं आते। उन्हें मीडिया में ठुमके लगाती राखी सावंत और शराब पीकर हंगामा करते राजा चौधरी तो नज़र आते हैं लेकिन आतंकवादियों के हाथों मारे गए बेगुनाहों के लिए संवेदना प्रकट करती ख़बरे नहीं दिखतीं। उन्हें जेसिका लाल और नीतिश कटारा मर्डर केस का फॉलोअप नहीं दिखता। और नज़रिए के इस कानेपन से ही छिद्रान्वेषण की शुरुआत होती है।
मीडिया के बाद ब्लॉग की दुनिया में सबसे हॉट टॉपिक आजकल आतंकवाद ही है। लेकिन ज़्यादातर ब्लॉग आतंकवाद से निबटने के तौर-तरीकों और इससे बचने पर चर्चा करने की बजाय मज़हबी नज़रिए से आतंकवाद को देखने की कोशिश में ज़्यादा नज़र आते हैं। नेताओं को गाली देने का शगल तो ख़ैर पुराना है। ईमानदारी से कहूं तो मैंने भी बारहा नेताओं को उनकी करतूतों पर लानत भेजी है, लेकिन ये भी सच है कि लानत भेजने से आगे भी सोचने की कोशिश की है।
वैसे एक सुखद सच्चाई ये भी है कि कुछ रचनाशील लोग तमाम उतार चढ़ावों के बावजूद साहित्य सेवा में डटे हैं। और इससे भी अच्छी बात ये है कि साहित्य सेवा में डटे इन ब्लॉगरों की रीडरशिप ना सिर्फ़ अच्छी है, बल्कि ऐसे पोस्ट्स पर मिलनेवाली प्रतिक्रियाएं भी उत्साह बढ़ाती हैं। उम्मीद जगाती हैं। मौजूदा राजनीति पर मेरे एक पोस्ट "नेताओं को सिर्फ़ गालियां ही देंगे या कुछ करेंगे भी!" के प्रतिक्रिया में मेरे एक साथी अनूप शुक्ल ने चुटकी ली थी कि गालियां देते रहने का मज़ा ही कुछ और है। कहीं-ना-कहीं मुझे अनूप जी की बातों में भी सच्चाई नज़र आती है। लगता है कि ब्लॉग की दुनिया से अगर निंदा और खिंचाई जैसी चीज़ों को अलग कर दिया जाए, तो शायद कुछ बचे ही नहीं। बहरहाल, सबकुछ एक हद तक हो तो ही अच्छा लगता है।

39 comments:

Smart Indian said...

ब्लॉग भी हमारे जीवन के अन्य हिस्सों जैसे ही हैं. अगर हम सारा दिन दूसरों की टांग खींचते हैं तो यहाँ भी शायद ही कुछ बेहतर कर सकें. वहीं रचनात्मकता की कोई कमी भी नहीं है हिन्दी ब्लॉग जगत में - आपका उदाहरण ही सामने है.

ghughutibasuti said...

सब जगह सब तरह के लोग, विचार मिलेंगे । जो आपको पसन्द आएँगें उन्हें पढ़ेंगे, समझेंगे जो नहीं उन्हें दूर से सलाम कह देंगे ।
घुघूती बासूती

महेन्द्र मिश्र said...

प्रत्येक व्यक्ति के स्वभाव और विचार अलग अलग होते है . सभी की विचारधारा एक सी नही हो सकती है . मेल हमेशा अपनी विचारधारा के लोगो से किया जाता है . रही बात अपनी अपनी पसंद की .

Anil Pusadkar said...

सहमत हूँ आप से लेकिन ब्लोग को समाज से अलग भी तो नही रखा जा सकता.ब्लोग समाज मे चल रही उथल-पुथल से अछूत नही रह सकता.

डॉ .अनुराग said...

आज चिटठा चर्चा में मैंने अपनी टिपण्णी में कुछ लिखा है शायद वहां आपको थोड़ा सा जवाब मिले .....क्यों लिखते है ब्लॉग ???

Alok Nandan said...

jisaka jo man arega likhega aur jisaka jo man karega vo parega...sampadakon se mukati ka matam to nahi manaya ja sakata..tecnological revolution ka salam hai....ek bar pura kura nikal jayega to phir creation bhi khud -b-khud hone lagega...bahut sambhawana hai blogging me....desh ka aakhiri nagari tak yadi blogger ban jaye to asali kranti to asise hi aa jagegi...isake liye her gaon me bijali hoga aur net hoga..yani dekh para likha ho jayega. jo kuch chalta hai chalne diya jaye...han isako rah dikhani ki koshish sarahaniye hai...

Udan Tashtari said...

इत्मिनान से अपनी पसंद खोज लिजिये और उन पर विचरण करें वरना तो पूरा समाज है और हर तरह के लोग हर जगह हैं.

Kavita Vachaknavee said...

सभी प्रकार के लोग सभी जगह मिल जाएँगे। फिर ब्लॊगजगत् ही अछूता थोड़े है? वैसे क्वालिटी और क्वांटिटी सदा से दो विरोधी ध्रुव हैं।

कडुवासच said...

... टीका-टिप्पणी आम बात है अगर समीक्षात्मक टिप्पणी है तो कोई बुराई की बात नही है, ... आप का लेख प्रसंशनीय है।

विधुल्लता said...

नज़रिए के इस कानेपन से ही छिद्रान्वेषण की शुरुआत होती है।
aapka lekh un loon ki aankhe khol degaa jo sirph apne chashmen se hi duniyaa dekhten hain ...

Satish Saxena said...

आपके लेखनी सशक्त तथा ईमानदार लगती है ! शुभकामनायें !

Arun Arora said...

मेरे भाई एन डी टी वी और बाकी चैनलो ने देशभक्ती के नाम पर करोडो कमाये . वैसे भी ये रोज कोई ना कोई मामला खडा कर वोट दीजीये या फ़लाने कॊ जिताईये सरीखे ड्रामे से नोट कमाही रहे है छै रुपये मेसे इन्हे चार से पाच रुपये मिल जाते है. पर देश भक्तॊ दिखाईये . अगर आपके अंदर देशके लिये जज्बा है तो एस एम एस करे इन्ही भाई लोगो ने कहा था . अगर हम इनकी देश्भक्ती के ढोंग को उजागर कर रहे है तो ये टांग खीचना नही हुआ फ़िर तो हम कुछ भी कही नही बोल सकते मेरे दोस्त . आपने भी यहा हमारी टांग खीचने की जो कोशिश की हम उसमे से अपनी टांग निकाले ले जा रहे है जी :)

Unknown said...

"सौ में से अस्सी ब्लॉग"(?), कुछ ज्यादा ही हो गया भाई, थोड़ा कम कर लीजिये इस आँकड़े को… खैर मुद्दे पर आते हैं, व्यक्ति ब्लॉग अपने मन की बात लिखने के लिये शुरु करता है, न कि अपने-आप को बुद्धिजीवी साबित करने के लिये… अब देश/समाज/काल में चारों ओर बुराईयाँ व्याप्त है, तो ब्लॉग पर कैसे कोई हरा-हरा लिख सकता है? वह सरकार की, प्रेस की, नेताओं की, पुलिस की, अफ़सरों की, आदि की आलोचना ही तो कर सकता है, एक आम आदमी के बस में इसके अलावा और रह क्या गया है?

आशीष कुमार 'अंशु' said...

MAI TO JANAAB APANI BAAT RAKHANE KE LIY BLOG LIKHATAA HOO...

महुवा said...

ये भी तो हो सकता है कि....जिन ब्लॉग्स को आपने अब तक विज़िट किया हो...सिर्फ उनमें ही ऐसा कंटेंट मिला हो....हो सकता है कि आपकी नज़र अब तक उन ब्लॉग्स पर नहीं पड़ी हो...जो आपकी नज़र में अच्छे हों..या आपके टेस्ट के हों ...इसलिए इतना जैनरेलाइज़ स्टेटमेंट देना....कुछ ठीक नहीं लगा...सिर्फ दूसरों की निंदा नहीं हो रही है...ये सब समाज के वो सच हैं जो ब्लॉग्स के माध्यम से हम सब जान पा रहे हैं....समाज में अगर कुछ अच्छा होगा तो वो भी ज़रुर नज़र आएगा....मुझे पूरी उम्मीद है...

सुप्रतिम बनर्जी said...

तनु जी,
मेरी पोस्ट पढ़ने के लिए शुक्रिया। इसका मर्म ब्लॉगिंग की दुनिया की मौजूदा हालात में बढ़ते निंदा की प्रवृति पर ज़रूर था, लेकिन मैंने अपने पोस्ट में -- वैसे एक सुखद सच्चाई ये भी है कि कुछ रचनाशील लोग तमाम उतार चढ़ावों के बावजूद साहित्य सेवा में डटे हैं। और इससे भी अच्छी बात ये है कि साहित्य सेवा में डटे इन ब्लॉगरों की रीडरशिप ना सिर्फ़ अच्छी है, बल्कि ऐसे पोस्ट्स पर मिलनेवाली प्रतिक्रियाएं भी उत्साह बढ़ाती हैं। -- जैसी बात भी लिखी है। शुक्रिया।

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

Dear one,Its a very normal course of human life to criticise others to come to limelight,it may be difference of opinion or views too.
You belong to media so better you decide the role of it.Every thing has two faces and blog or media is no exception.
We must see that our sole concern and priority is to fight and eliminate terrorism in the country and we should act accordingly.
you can analyse the things ,its good
my best wishes.
dr.bhoopendra

shama said...

Jitni wyakti, utni prakruti....kiseeka kiseepe bas nahee....haan jahan koyi achha kaam kar raha ho uski sarahna karna zaroori hai....
Shubhkamnayon sahit mere blogpe aaneks snehil nimantranbh....

रचना गौड़ ’भारती’ said...

मेरा ब्लोग केवल साहित्य और पत्रिका के लिए है ।
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लि‌ए देखें
www.chitrasansar.blogspot.com

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

ब्लोग समाज का दर्पण है क्यों कि यहाँ अभी आर्थिक स्वार्थ हावी नहीं हुआ है। इलेक्ट्रॊनिक मीडिया का नियन्त्रण बाजारी शक्तियों के हाथ में चला गया है। आप उस ओर रहकर इस ओर की बात करेंगे तो दूसरा क्या कहेंगे?

Prakash Badal said...

ज़रूरी नहीं कि दूसरों की निंदा ही करे ब्लॉग। यदि ऐसा ही है तो आप बताएं कि क्या आपने भी इसीलिए ब्लॉग बनाया है इसका जवाब मैं ही दे देता हूं कि आपके ब्लॉग अच्छा लिखने के लिये शुरू किया है तो आपको बधाई। जिनकी आदत निंदा करना होती है केवल वही निंदा करते हैं।
आशा है आप भविष्य में और अच्छा लिखेंगे।

अनूप शुक्ल said...

अच्छा लिखा है। ब्लाग अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। जैसे अभिव्यक्त करने वाले होंगे वैसी ही इसकी दिशा/दशा बनेगी!

डा० अमर कुमार said...

"गालियां देते रहने का मज़ा ही कुछ और है "

एक लाइना की तर्ज़ पर.. और पिटते रहने का ?
पर आज तो सरकार बदले बदले से नज़र आते हैं ।
लो सुप्रतिम, मैंने तो गुरु की नसीहत के पालन का प्रारंभ भी कर दिया..

Vineeta Yashsavi said...

Mujhe ek azadi mil jati hai apni baat karne ke liye aur jub kuchh log un bato se sahmat hote dikhte hai to lagta hai ki mai akeli nahi hu mere jaise aur bhi dusre hai.

Dr Mandhata Singh said...

दुनिया रंगविरंगी है। हर शख्श ना एक जैसा है और ना ही एक जैसी सोच रखता है। तो यह विविधता तो पूरे समाज में दिखाई देगी। ऐसे में ब्लाग को भी इसी समाज का दर्पण क्यों नहीं मान लेते आप ? अगर यह बुद्धिजीवियों या विशिष्ट वर्ग का है तो भी सभी एक जैसे नहीं हो सकते। ब्लाग लेखन पर उनके बुद्धि-विचार की परछाई ते पड़नी ही है। बस चाहिए यही कि- सार-सार को गहि रह्यो, थोथा देहु उड़ाय-- की भूमिका में रहना होगा। लोगों के लिखने की आजादी तो होनी ही चाहिए।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

बिलकुल सही कहा आपने लेकिन एक बात ब्लॉग एक खुला आसमान है और ब्लोगर पतंगे जिधर हवा बहेगी पतंग उधर ही उडेगी .

प्रकाश गोविंद said...

सुप्रतिम जी !

उम्दा विचारोत्तेजक लेख !
अच्छे सवाल उठाये हैं आपने !

आप ब्लॉग क्यों लिखते हैं?" :--
बस इतना ही कहा जा सकता है -
सुखिया सब संसार हैं खावे और सोवै
दुखिया दास कबीर है जागे और सोवै !

ज़्यादातर लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ दूसरों की निंदा करने और उन्हें नीचा दिखाने के लिए ही ब्लॉग लिखते हैं। :--
यह तो सही नही है सुप्रतिम जी ! मै नहीं
मानता कि ऐसा कुछ है ! हो सकता है कुछ
लोग ब्लोगर ऐसे हों ! फिर भी ऐसे ब्लॉग
बामुश्किल 10 प्रतिशत ही होंगे !

नज़रिए के इस कानेपन से ही छिद्रान्वेषण की शुरुआत होती है। :--
जिससे उम्मीद ज्यादा होती है ..... क्रोध
और खीझ भी उसी पर सबसे ज्यादा आती है !
आलोचना का शिकार भी उसी को बनना पड़ता
है !

एक सवाल मेरा भी :
क्या समाज व देश को शिक्षित करने ,,,
जागरूक बनाने ,,,, नवजाग्रत करने में
मीडिया की भूमिका असरदार नहीं होनी चाहिए ?

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है
रचना पर टिपण्णी उसे पढ़ने के बाद दूँगी , शुभ-कामनाएं

मेरा ब्लाग आपकी टिपण्णी-सज्जा के लिए आतुर है कृप्या एक बार अवश्य पधारें

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग पढ़कर. काफी दिनों से आप लिख रहे हैं मुझे पता नही था. साधुवाद स्वीकारें और पंजाब पधारें तो आतिथ्य ज़रूर स्वीकारें.

ravish ranjan shukla said...

ब्लॉग लिखने के बारे में मैं ज्यादा कमेंट तो नहीं कर सकता है लेकिन अब तक कुछ ब्लॉग को छोड़कर ज्यादातर ब्लॉगर अपने ब्लॉग को हिट करने के लिए कुछ ऐसा लिखते हैं ताकि लोग पढ़े..और तार-तार करने वाली प्रतिक्रिया लिखे..ब्लॉग के लिए अभी तक कोई टीआरपी रेटिंग कंपनी नहीं है वरना ब्लॉगर भी राखी सावंत की तरह स्टंट करने से चूकेंगे नहीं...इन ब्लॉगों में आपको संस्पेंस..रोमांच...रोमांस और भी बहुत कुछ मिल सकता है...लेकिन हिन्दी में ऐसे ब्लॉग हैं जिनमें अनुभवों की गहराई के साथ रचनात्मक मुखरता विश्वास पैदा करती है और उन्हें रुचिपूॆण पढ़ने से ऎान भी पढ़ता है...लेकिन व्यक्तिगत खुंदक निकालने वाले ब्लॉगों पर त्वरित प्रतिक्रिया उन्हें प्रेरित करती है..बचना चाहिए.....

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

अच्छा िलखा है आपने । भाव और िवचारों का अच्छा समन्वय है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और प्रितिक्रया भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

नजरिया नाम की जिस चीज़ का आपने ज़िक्र किया ,वह तो सभी का अपना होता है .व्यक्ति की मानसिकता का परिचय भी उसके लेखन में नज़र आ जाता है .

आप लोगों को जाग्रत करने का अपना कार्य पूरी ईमानदारी से करते रहें मेरी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं
धन्यवाद

प्रवीण त्रिवेदी said...

व्यक्ति के स्वभाव और विचार अलग अलग होते है . सभी की विचारधारा एक सी नही हो सकती है !!!!!!


हिन्दी ब्लॉग जगत में प्रवेश करने पर आप बधाई के पात्र हैं / आशा है की आप किसी न किसी रूप में मातृभाषा हिन्दी की श्री-वृद्धि में अपना योगदान करते रहेंगे!!!
इच्छा है कि आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए!!!!
स्वागतम्!
लिखिए, खूब लिखिए!!!!!


प्राइमरी का मास्टर का पीछा करें

Manoj Kumar Soni said...

सच कहा है
बहुत ... बहुत .. बहुत अच्छा लिखा है
हिन्दी चिठ्ठा विश्व में स्वागत है
टेम्पलेट अच्छा चुना है

कृपया मेरा भी ब्लाग देखे और टिप्पणी दे
http://www.ucohindi.co.nr

Manoj Kumar Soni said...

सुप्रतिम दादा ,
आप मेरे ब्लाग पर आये, बहुत अच्छा लगा
इस सटीक टिप्पणी के लिये धन्यवाद

Girish Kumar Billore said...

सुप्रतिम जी
सादर अभिवादन
विचारों का तीखा मीठा नमकीन भण्डार है यह जीवन . अगर कोई बात मुझे ग़लत लगी
मैंने लिख दी हो सकता है आप असहमत हों तो भी अभिव्यक्ति का अर्थ यह न लगाया जाए कि
हम नकारात्मक सोच के साथ जन्में हैं . यहाँ देश की सुरक्षा पर कही गयी बातें सबकी अपनी-भावनाएं हैं
यहाँ किसी को किसी के स्पर्धा का न तो शौक है न ही कोई किसी
की टांग खींच रहा है. सब शोक मग्न और अपनी विचार यात्रा
पर हैं

Girish Kumar Billore said...

AAP KA MERE BLOG'S PAR SWAAGAT HAI

Aadarsh Rathore said...

कुछ हद तक आपकी बात सही है।
बहस हो लेकिन स्वस्थ हो। व्यक्तिगत आक्षेप न लगाए जाएं